लगे देखकर उसको मानो
ज्यों प्राची नभ की उषा किरणे
उर्मिल अलके बनकर
उसके कपोल में डोल रही हैं,
मधुप मधुर गुंजार सदृस
प्रिय मुख से वो बोल रही,
मेरे युगल दृगों से मिलकर
उसकी पलको का उत्थान पतन,
वो स्मित उन अधरों में उसके
कर्ण स्पर्शित तिरछे नयन
शशि खण्ड सा आनन उसका
श्याम पट लिपटा बदन
उसकी ये स्मृतियाँ, कपाट
मेरे हृदय का खोल रही हैं
श्रांत पथिक मै ,मेरे मन में
आशा की किरणे घोल रही है।
©️®️vikash❤
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