"पराई नींद में सोने का तजरबा कर के
मैं ख़ुश नहीं हूँ तुझे ख़ुद में मुब्तला कर के
ये क्यूँ कहा कि तुझे मुझ से प्यार हो जाए
तड़प उठा हूँ तिरे हक़ में बद-दुआ' कर के"
पराई नींद में सोने का तजरबा कर के
मैं ख़ुश नहीं हूँ तुझे ख़ुद में मुब्तला कर के
ये क्यूँ कहा कि तुझे मुझ से प्यार हो जाए
तड़प उठा हूँ तिरे हक़ में बद-दुआ' कर के