तोड़ लिया उसे डाली से पूछी ना कभी गुल की भी रज़ा शाख | हिंदी कविता

"तोड़ लिया उसे डाली से पूछी ना कभी गुल की भी रज़ा शाखों से जुदा कर के इनको फूलों को क्यूँ देते हो सज़ा ये दर्द जुदाई का जाने कैसे वो सहता होगा दिल फट जाता होगा उसका जब यूँ तन्हा रहता होगा तोड़ लिया जब जी चाहा उसे बालों में सजाने को जी चाहा फिर फेंक दिया उसे पैर तले दब जाने को फूल जो अपने यौवन की दहलीज़ पे ही मिट जाता है हर दर्द खिज़ा का सहता है फिर भी गुलशन महकता है शाखों पे हो या बालों में फूलों का यही फसाना है इन्हें कांटों में ही जीना है इन्हें काटों में मर जाना है।। ©Anoop Jadon"

 तोड़ लिया उसे डाली से
पूछी ना कभी गुल की भी रज़ा
शाखों से जुदा कर के इनको
फूलों को क्यूँ देते हो सज़ा

ये दर्द जुदाई का जाने
कैसे वो सहता होगा
दिल फट जाता होगा उसका
जब यूँ तन्हा रहता होगा

तोड़ लिया जब जी चाहा
उसे बालों में सजाने को
जी चाहा फिर फेंक दिया 
उसे पैर तले दब जाने को

फूल जो अपने यौवन की
दहलीज़ पे ही मिट जाता है
हर दर्द खिज़ा का सहता है
फिर भी गुलशन महकता है

शाखों पे हो या बालों में
फूलों का यही फसाना है
इन्हें कांटों में ही जीना है
इन्हें काटों में मर जाना है।।

©Anoop Jadon

तोड़ लिया उसे डाली से पूछी ना कभी गुल की भी रज़ा शाखों से जुदा कर के इनको फूलों को क्यूँ देते हो सज़ा ये दर्द जुदाई का जाने कैसे वो सहता होगा दिल फट जाता होगा उसका जब यूँ तन्हा रहता होगा तोड़ लिया जब जी चाहा उसे बालों में सजाने को जी चाहा फिर फेंक दिया उसे पैर तले दब जाने को फूल जो अपने यौवन की दहलीज़ पे ही मिट जाता है हर दर्द खिज़ा का सहता है फिर भी गुलशन महकता है शाखों पे हो या बालों में फूलों का यही फसाना है इन्हें कांटों में ही जीना है इन्हें काटों में मर जाना है।। ©Anoop Jadon

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