यूँ तो बहुत जिद्दी है मेरी बहन, पर कब उसने दूसरों

"यूँ तो बहुत जिद्दी है मेरी बहन, पर कब उसने दूसरों के लिए जीना शुरू कर दिया पता ही न चला पहले तो उसके पेट में बाते पचा न करती थी,पर कब उसने बातों को पीना सीख लिया पता ही न चला जब लग जाती थी छोटी से खरोंच तो पूरे घर को चीख चीख कर घर को सर पर उठा लेती थी,पर कब उसने चोट को छुपाना सीख लिया पता ही न चला छोटी छोटी बाते सुन के जो मुँह अपना फुला के घर में बैठ जाती थी,आज उसने हर बातो को पीना सीख लिया पता ही न चला यूं जिसने कभी नाप नाप कर मुझसे ज्यादा मैगी और गिन कर दो ज्यादा समोसे खाये थे,आज अपना हिस्सा दूसरों को हँसते हुए देना सीख लिया पता ही न चला जिसने कभी घर में बैठ कर अपना शासन मुझपर चलाया था और पापा मम्मी के साथ हर बात पर फैसला सुनाया था,उसने आज हँस कर सबका हुक्म बजाना सीख लिया पता ही न चला जिस भुक्खड़ ने कभी व्रत नही किया था,आज वो व्रत मारना सीख गयी पता ही न चला जो दिन भर घर में दुपट्टा लहराते उधम मचाती घूमती थी,उसने सर पर आँचल रख साड़ी पहनना सीख लिया पता ही न चला कितनी जल्दी बड़ी हो गयी मेरी दीदी,पता ही न चला pragya mishra✍️"

 यूँ तो बहुत जिद्दी है मेरी बहन, पर कब उसने दूसरों के लिए जीना शुरू कर दिया पता ही न चला
पहले तो उसके पेट में बाते पचा न करती थी,पर कब उसने बातों को पीना सीख लिया पता ही न चला
जब लग जाती थी छोटी से खरोंच तो पूरे घर को चीख चीख कर घर को सर पर उठा लेती थी,पर कब उसने चोट को छुपाना सीख लिया पता ही न चला
छोटी छोटी बाते सुन के जो मुँह अपना फुला के घर में बैठ जाती थी,आज उसने हर बातो को पीना सीख लिया पता ही न चला
यूं जिसने कभी नाप नाप कर मुझसे ज्यादा मैगी और गिन कर दो ज्यादा समोसे खाये थे,आज अपना हिस्सा दूसरों को हँसते हुए देना सीख लिया पता ही न चला
जिसने कभी घर में बैठ कर अपना शासन मुझपर चलाया था और पापा मम्मी के साथ हर बात पर फैसला सुनाया था,उसने आज हँस कर सबका हुक्म बजाना सीख लिया पता ही न चला
जिस भुक्खड़ ने कभी व्रत नही किया था,आज वो व्रत मारना सीख गयी पता ही न चला
जो दिन भर घर में दुपट्टा लहराते उधम मचाती घूमती थी,उसने सर पर आँचल रख साड़ी पहनना सीख लिया पता ही न चला
कितनी जल्दी बड़ी हो गयी मेरी दीदी,पता ही न चला



                             pragya mishra✍️

यूँ तो बहुत जिद्दी है मेरी बहन, पर कब उसने दूसरों के लिए जीना शुरू कर दिया पता ही न चला पहले तो उसके पेट में बाते पचा न करती थी,पर कब उसने बातों को पीना सीख लिया पता ही न चला जब लग जाती थी छोटी से खरोंच तो पूरे घर को चीख चीख कर घर को सर पर उठा लेती थी,पर कब उसने चोट को छुपाना सीख लिया पता ही न चला छोटी छोटी बाते सुन के जो मुँह अपना फुला के घर में बैठ जाती थी,आज उसने हर बातो को पीना सीख लिया पता ही न चला यूं जिसने कभी नाप नाप कर मुझसे ज्यादा मैगी और गिन कर दो ज्यादा समोसे खाये थे,आज अपना हिस्सा दूसरों को हँसते हुए देना सीख लिया पता ही न चला जिसने कभी घर में बैठ कर अपना शासन मुझपर चलाया था और पापा मम्मी के साथ हर बात पर फैसला सुनाया था,उसने आज हँस कर सबका हुक्म बजाना सीख लिया पता ही न चला जिस भुक्खड़ ने कभी व्रत नही किया था,आज वो व्रत मारना सीख गयी पता ही न चला जो दिन भर घर में दुपट्टा लहराते उधम मचाती घूमती थी,उसने सर पर आँचल रख साड़ी पहनना सीख लिया पता ही न चला कितनी जल्दी बड़ी हो गयी मेरी दीदी,पता ही न चला pragya mishra✍️

मेरी दीदी

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