ज़िन्दगी बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है, है दर्द मेरे किनारे,
ढूंढूं भी तो तुझे कहाँ ढूंढूं, है हिज्र हर किनारे।
तस्वीर बनाता था जो शायर, लफ़्ज़ों को गढ़कर,
गुम है वो किसी दौर में, ढूंढो है किस किनारे।
इन शहर , इन बागों में, ना मिला कोई तुझसा अनमोल,
जुगनू तेरी अब आंखों के, ढूंढें हैं मुझे हर किनारे।
पूछा नहीं तूने कि, क्या हाल है 'परमार' तेरा मेरे बिन,
हर शक्श लगे अपना, मिल जाए दिल हर किनारे।
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल- बच्चों के खेल का मैदान, हिज्र-जुदाई, लफ़्ज़- सार्थक शब्द.
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