"ज़र्रा-ज़र्रा ज़िंदा कर दे
बेड़ियों को परिंदा कर दे
वारूं जान-जान सौ बार ऐसी जिंद की आज़ादियां...
रवां है इश्क़ बनके मुझमें इस हिंद की आज़ादियां...
हर कैद की सलाखों पर
इन लबों पर, हैं सर आंखों पर
इंकलाब के निशान से सरफ़रोश तक की झांकियां
वारूं जान-जान सौ बार ऐसी जिंद की आज़ादियां...
रवां है इश्क़ बनके मुझमें इस हिंद की आज़ादियां...
©pawankumarpatel"