किसी रोज़  बलबलाती हुई एक आंधी आएगी और  | हिंदी कविता

"किसी रोज़  बलबलाती हुई एक आंधी आएगी और  एक सूखे हुए पत्ते की तरह उड़ा ले जाएगी तुम्हारा ग़ुरूर और तुम्हारी अकड़, सत्ता की हनक ये कुर्सी और ©Author Nitin"

 किसी रोज़ 

बलबलाती हुई

एक आंधी आएगी

और 


एक सूखे हुए

पत्ते की तरह

उड़ा ले जाएगी

तुम्हारा ग़ुरूर

और


तुम्हारी अकड़,

सत्ता की हनक

ये कुर्सी

और

©Author Nitin

किसी रोज़  बलबलाती हुई एक आंधी आएगी और  एक सूखे हुए पत्ते की तरह उड़ा ले जाएगी तुम्हारा ग़ुरूर और तुम्हारी अकड़, सत्ता की हनक ये कुर्सी और ©Author Nitin

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