"वो रातें
रेजगारी सी
मेरे ख़्वाब में खनकती हैं
और मुझे सोने नहीं देती
सिरहाने पर
तेरा ज़िक्र
मैंने उँगलियों से लिखा है
और तकिए पर कई रात है
जो सहर नहीं होती
वो लिहाफ तेरी ख़ुश्बू से मोगरा हुआ है
वो सलवटें तेरी तपिश से मोम हो गई है
और मैं गुमशुदा सा तुझको तलाशता हूँ
ना अपना पता मिलता है
ना तेरी ख़बर आती है
वो रातें
रेजगारी सी
मेरे ख़्वाब में खनकती हैं
और मुझे सोने नहीं देती
रातें रेज़गारी सी @ मैं ऱज़ ऱज़ हिज़्र मनावाँ
©Mo k sh K an"