बस ख़लिश ही रह गई हैं
मेरे वजूद में
जब याद सरकती है
तो दम घुटता है
कभी सोचा नहीं था, मैंने
कि वो लोखंडवाला बैक रोड की वो चौड़ी सडक़
इतनी संकरी हो सकती है
कि अकेले भी गुजरता हूँ जो जज़्बात छिल जाते हैं
वो समंदर, वो सहील, वो उफनती लहरें
कभी तकाज़ा भी नहीं करते
और छोड़ जाते हैं मेरे सीने पर
वो रेत
जो तेरे पैरों में चस्पा हुआ करती थी
सब कुछ बदल गया है
भाटे के क़ुतुब जैसा
बस ख़लिश ही रह गई हैं
मेरे वजूद में
जब याद सरकती है
तो दम घुटता है
मैं ऱज़ ऱज़ हिज़्र मनवाँ @ जब याद सरकती है
©Mo k sh K an
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