।।विचार कर्णिका।।
देखा जाए तो विवेकी जीव बड़ा ही अविवेकी सा कभी कभी प्रतीत होता है, लगता है कभी कभी तो कि इस विवेकी जीव से अच्छे तो वो मूक अविवेकी जीव ठीक है, जिन्हे हम पशु कहते है। वो अवश्य संवेदना, भावना को समझता है। पर यह विवेकी मनुष्य अपने निज स्वार्थ तक ही सीमित रहता है, और उसे केवल अपनी भावनाएं, संवेदना की चिंता रहती है, अन्य की नहीं उसे तो अन्य की संवेदना, भावना बस बोझ ही लगती है। यही है संसार खैर स्वयं को तय करना है स्व निर्णय क्या रखना है।
बस सोचना स्वयं को है की हम विवेक जीव जो मनुष्य है तो वैसा बने या हम निष्प्राण निर्जीव व्यक्ति यदि ये समझने में हम असमर्थ है तो फिर हम विवेकी जीव से तो अविवेकी जीव जिसे पशु कहते है वो ठीक है।
बाकी आप सब समझदार है ही...
इसलिए.... don't worry bol hari 😀😀😀
योगेश कुमार मिश्र"योगी"
©Yogesh Kumar Mishra"yogi
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