आदमी पानी का बुलबुला*
धरती पर बहुत कुछ मिला
जीवन भर देखा मानव मेला
सब रहेगा यहां जाना अकेला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।।१।।
कुछेक को पदों का अंहकार
समाज नही करता स्वीकार
पदमुक्ती पर मिलता सीला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।।२।।
आदमी अपने ही घरमें है मेहमान
ध्यान रहे किसीका ना हो नुकसान
जितेजी सबसे अपना मन मिला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।।३।।
कोई नही पुछता कितना जमाया
यह सच है समाज में क्या कमाया
कितने निराश्रीतों का हुआ भला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।।४।।
दुनिया में विद्वता की है पहचान
उसको ही मिलता मानसन्मान
इसे प्राप्त करने में लगती कला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।।५।।
मॄत्युपरातं सबका नही होता नाम
इंसान का चरित्र आता स्वयं के काम
धन दौलत नही दिल होना खुला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।।६।।
*महेंद्र कोल्हटकर गोंदिया*
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