आज बहुत दिनों बाद,
मैंने उनसे मुलाकात की
रूठ गए वो
उन्हें मनाने की फिर से कोशिश की
उन्होंने अपनी नाराज़गी कुछ यूं इज़हार की-
अब तुम्हें हमारी याद आती नहीं
नए दोस्त बना लिए
अब पुरानों की याद सताती नहीं
बंद हूंँ मैं एक अरसे से,
रज़ चेहरे की पोछी जाती नहीं
अनावश्यक बन गई हूंँ मैं,
मिलने भी कभी आते नहीं
मुझसे जो इल्म था तुझे,
वो औरों से कैसे मिल पाएगा
तू किसी के भी पास चला जा,
पर जहाज़ का पंछी लौटकर जहाज़ पर ही आयेगा
तेरा हर एक रस्ता,
मुझ पर आकर रुक जाएगा
और फिर,
मैं पास बैठा उनके,
शिकायतें बेहिसाब सुनी
देखा उन्हें करीब से और फिर पुरानी बातें याद की
एक मुद्दत के बाद,
मैंने अपनी किताबों से बात की
शायद! भूल गया था उन्हें,
फिर से पढ़ने की शुरुआत की
मैंने आज फिर से अपनी किताबों से मुलाक़ात की
©पूर्वार्थ
#sunshine