महफूज़ था मैं अपने एक घर की सल्तनत में, मुझे उम्मी
"महफूज़ था मैं अपने एक घर की सल्तनत में, मुझे उम्मीद नहीं थी, कि मोहब्बत इसकदर जंग लायी,
हाथों में नहीं था,लबों पर था खंजर उसके, एक चुंबन ने भंग कर दी दिल की हर चतुराई,
फिर मुझे बचाने के लिए ना काबे की दुआ, ना ही मंदिर की मन्नत रंग लाई!"
महफूज़ था मैं अपने एक घर की सल्तनत में, मुझे उम्मीद नहीं थी, कि मोहब्बत इसकदर जंग लायी,
हाथों में नहीं था,लबों पर था खंजर उसके, एक चुंबन ने भंग कर दी दिल की हर चतुराई,
फिर मुझे बचाने के लिए ना काबे की दुआ, ना ही मंदिर की मन्नत रंग लाई!