महफूज़ था मैं अपने एक घर की सल्तनत में, मुझे उम्मीद नहीं थी, कि मोहब्बत इसकदर जंग लायी,
हाथों में नहीं था,लबों पर था खंजर उसके, एक चुंबन ने भंग कर दी दिल की हर चतुराई,
फिर मुझे बचाने के लिए ना काबे की दुआ, ना ही मंदिर की मन्नत रंग लाई!
फरवरी बीत गयी है,अब तो मैं तुम्हें गुलाब भी नहीं दे सकता,
पहला इश्क होता तो बात ठीक थी,मैं दूसरे का नाम इंकलाब तो नहीं दे सकता,
कहानी अपनी छोटी रखना तुम,मैं फ़िर से इश्क को जिंदगी की नयी किताब तो नहीं दे सकता!
गलती है मोहब्बत के ख़्यालों की,
ये मुस्कुराहट तेरे चेहरे की बेकसूर है,
मैं हर दाग हूँ चाँद का,तू उसी का नूर है,
मैं कोयला किसी खदान का,तू कोहिनूर है,
मैं नौकर तेरे शहर में,और तू ही मेरी हुजूर है!
पुरानी तस्वीर है जेहन में,पुराने खत है,पुरानी याद है,पुरानी बात है,
फिर भी वो कहती है मोहब्बत में बिछड़ते हैं कई लोंग इसमें नया क्या है?
उसे लगता है ख्वाहिशें बाकी है मुझमें,प्यार कहीं जिंदा है सिर्फ वो खुद ही तो गयी और गया क्या है??
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