जब इक नन्हीं चींटी चढ़के दीवारों पे सफलता प्राप्त | हिंदी कविता

"जब इक नन्हीं चींटी चढ़के दीवारों पे सफलता प्राप्त कर जाती है।, जब सूरज की डूबती करने फिर आशा में बदल जाती हैं , तो फिर क्यूं बस कुछ गमों के आजाने से मनुष्य के जीवन की परिभाषा ही बदल जाती है। सीखना है तो उन वीरों से सीखो, जो सरहद पर अपनी जान गवां कर, अपनों से मिलने की आखिरी आस मिटा कर, बिखेरते हैं चेहरे पर वो आखिरी मुस्कान, उनकी आखिरी मुस्कान भी वंदे मातरम् कह जाती है। ये जिंदगी है साहब यहां कभी दिन है तो कभी रात है, कभी सुबह है तो कभी शाम है..क्यों की जिंदगी तो बस जीने का नाम है।( जय हिंद) Archana Singh ©A. Singh"

 जब इक नन्हीं चींटी चढ़के दीवारों पे सफलता प्राप्त कर जाती है।, जब सूरज की डूबती करने फिर आशा में बदल जाती हैं , तो फिर क्यूं बस कुछ गमों के आजाने से मनुष्य के जीवन की परिभाषा ही बदल जाती है। सीखना है तो उन वीरों से सीखो, जो सरहद पर अपनी जान गवां कर, अपनों से मिलने की आखिरी आस मिटा कर, बिखेरते हैं चेहरे पर वो आखिरी मुस्कान, उनकी आखिरी मुस्कान भी वंदे मातरम् कह जाती है। ये जिंदगी है साहब यहां कभी दिन है तो कभी रात है, कभी सुबह है तो कभी शाम है..क्यों की जिंदगी तो बस जीने का नाम है।( जय हिंद)     Archana Singh

©A. Singh

जब इक नन्हीं चींटी चढ़के दीवारों पे सफलता प्राप्त कर जाती है।, जब सूरज की डूबती करने फिर आशा में बदल जाती हैं , तो फिर क्यूं बस कुछ गमों के आजाने से मनुष्य के जीवन की परिभाषा ही बदल जाती है। सीखना है तो उन वीरों से सीखो, जो सरहद पर अपनी जान गवां कर, अपनों से मिलने की आखिरी आस मिटा कर, बिखेरते हैं चेहरे पर वो आखिरी मुस्कान, उनकी आखिरी मुस्कान भी वंदे मातरम् कह जाती है। ये जिंदगी है साहब यहां कभी दिन है तो कभी रात है, कभी सुबह है तो कभी शाम है..क्यों की जिंदगी तो बस जीने का नाम है।( जय हिंद) Archana Singh ©A. Singh

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