किसी भी शहर में हों सारे बड़ों का राबता था हमीं से | हिंदी शायरी

"किसी भी शहर में हों सारे बड़ों का राबता था हमीं से टूट गया जो घरों से राबता था। किसी ने पूछा नहीं तुमसे मेरे बारे में तुम्हारे साथ तो सब दोस्तों का राबता था। उसी ने हमसे कहा था कि राबता रखो वो जिसके साथ मेरे दुश्मनों का राबता था। - ज़ाहिद बशीर"

 किसी भी शहर में हों सारे बड़ों का राबता था
हमीं से टूट गया जो घरों से राबता था।

किसी ने पूछा नहीं तुमसे मेरे बारे में 
तुम्हारे साथ तो सब दोस्तों का राबता था।

उसी ने हमसे कहा था कि राबता रखो 
वो जिसके साथ मेरे दुश्मनों का राबता था।

- ज़ाहिद बशीर

किसी भी शहर में हों सारे बड़ों का राबता था हमीं से टूट गया जो घरों से राबता था। किसी ने पूछा नहीं तुमसे मेरे बारे में तुम्हारे साथ तो सब दोस्तों का राबता था। उसी ने हमसे कहा था कि राबता रखो वो जिसके साथ मेरे दुश्मनों का राबता था। - ज़ाहिद बशीर

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