शीत ऋतु दिवस की निशा जो छोटी थी अब बडी़ होकर इठला

"शीत ऋतु दिवस की निशा जो छोटी थी अब बडी़ होकर इठलाती हैं ढ़ल जाता है भानु शिघ्र और संध्या खूब इतराती हैं तपता सुरज सुकुन देता हैं और हवाये प्रहार बराबर हैं पसीनो की बूंदे बदन पर थी अब ओस की बूंदे धरा पर हैं सब छिप रहे थे जो छाये में अब धूप उन्हें खूब भाये हैं जो जल शीतल लगता था वह कांटे सा अब चुभता हैं जो भिनसार अंशु लाता था वह अंधकार में ही रहता हैं स्वयं रवि देर से जगता हैं और सबको भी सुलाता हैं वातावरण बनकर ठिठुरन कोहरे से सज जाता हैं लिपटकर चादर में तब जीवन चलता जाता हैं जीवन चलता जाता हैं ©संतोष"

 शीत ऋतु

दिवस की निशा जो छोटी थी
अब बडी़ होकर इठलाती हैं
ढ़ल जाता है भानु शिघ्र
और  संध्या खूब  इतराती हैं
तपता सुरज सुकुन देता हैं
और हवाये प्रहार बराबर हैं 
पसीनो की बूंदे बदन पर थी
अब ओस की बूंदे धरा पर हैं
सब छिप रहे थे जो छाये में
अब धूप उन्हें खूब भाये हैं
जो जल शीतल लगता था
वह कांटे सा अब चुभता हैं
जो भिनसार अंशु लाता था
वह अंधकार में ही रहता हैं
स्वयं रवि देर से जगता हैं
और सबको भी सुलाता हैं
वातावरण बनकर ठिठुरन
कोहरे से सज जाता हैं
लिपटकर चादर में तब
जीवन चलता जाता हैं
जीवन चलता जाता हैं

©संतोष

शीत ऋतु दिवस की निशा जो छोटी थी अब बडी़ होकर इठलाती हैं ढ़ल जाता है भानु शिघ्र और संध्या खूब इतराती हैं तपता सुरज सुकुन देता हैं और हवाये प्रहार बराबर हैं पसीनो की बूंदे बदन पर थी अब ओस की बूंदे धरा पर हैं सब छिप रहे थे जो छाये में अब धूप उन्हें खूब भाये हैं जो जल शीतल लगता था वह कांटे सा अब चुभता हैं जो भिनसार अंशु लाता था वह अंधकार में ही रहता हैं स्वयं रवि देर से जगता हैं और सबको भी सुलाता हैं वातावरण बनकर ठिठुरन कोहरे से सज जाता हैं लिपटकर चादर में तब जीवन चलता जाता हैं जीवन चलता जाता हैं ©संतोष

#Winter

People who shared love close

More like this

Trending Topic