इतने गहरे ज़ख्म अपनो ने लगाए रूह पर...
दिल से उसकी बेवफाई का गिला जाता रहा...
साथ उसके मैं रहा लेकिन कुछ इस तरह रहा...
दूरियां बढ़ती गई और फासला जाता रहा...
महकता गुलदान का हर फूल मुरझाने लगा...
उठ के मेरे घर से जब वो मेहरबान जाता रहा...
क्या किसी से अब वफाओं की तमन्ना हम करें...
मुझ में रह कर दिल मेरा उसकी तरफ जाता रहा...
दिल से हर एक ख़्वाब का रुखसत जनाज़ा कर दिया...
तुझको पा लेने का हर वहम ओ गुमां जाता रहा...
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