जो बात दिल में थी वो लिखा ही नहीं
जो कुछ भी सोचा तुमसे कहा ही नहीं
आधे अधूरे ख़त मैं लिख कर छोड़ देती हूं
अपनी कलम पर भी मैं एतबार कर पाती नहीं
जब लिखा सच तो कागज मरोड़ के फेंक दिया
मेरी बात तुम तक पहुँच पाती ही नहीं
ज़िन्दगी हँस के गुज़ार तो रही हूं
मगर ये मलाल दिल से अब जाता ही नहीं
अलमारी में पड़े अधूरे ख़त अब भी साँसे ले रहे हैं
मगर पीले पड़े पन्नों पर किसी की नज़र जाती है नहीं
©Richa Dhar
#Likho अधूरे खत