घट यों घट्यों ; श्वास सिमट्यों , छूट्यों तनसों प्रान ।
एक दरस री आस मिटै न , बात-जोंत इक सान ।।
लरखत देह टेक अन नाही , बंशीवार सहारौ चाह ।
रहीबर निरखि गयों कुम्लानी , हे नलिनी रूप नसान ।।
दरपन होतुं रूप तुम लेतूं , लागी को नही दाम ।
ऋतु मैं सुहावन काश को होतूं , पीर बहत सुफलाय ।।
ऐ! री ! जनम बिन श्वांसन बीतौ, मीरा जासु रहे पछतात् ।
उतिरीं-चढ़िहीं हियमय धायौ , रिझत नाही घनश्याम ।।
कनक भये तीर अंग लागी , रंजित बैठूं कासै पग थाम ।
पञ्चभूत सजीं मैं कर तोर , उर मम् अंतर भूत समान ।।
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