घट यों घट्यों ; श्वास सिमट्यों , छूट्यों तनसों प

"घट यों घट्यों ; श्वास सिमट्यों , छूट्यों तनसों प्रान । एक दरस री आस मिटै न , बात-जोंत इक सान ।। लरखत देह टेक अन नाही , बंशीवार सहारौ चाह । रहीबर निरखि गयों कुम्लानी , हे नलिनी रूप नसान ।। दरपन होतुं रूप तुम लेतूं , लागी को नही दाम । ऋतु मैं सुहावन काश को होतूं , पीर बहत सुफलाय ।। ऐ! री ! जनम बिन श्वांसन बीतौ, मीरा जासु रहे पछतात् । उतिरीं-चढ़िहीं हियमय धायौ , रिझत नाही घनश्याम ।। कनक भये तीर अंग लागी , रंजित बैठूं कासै पग थाम । पञ्चभूत सजीं मैं कर तोर , उर मम् अंतर भूत समान ।। © vrindaa"

 घट यों घट्यों ; श्वास सिमट्यों ,  छूट्यों  तनसों प्रान । 
एक दरस री आस मिटै न , बात-जोंत इक सान ।।
लरखत देह टेक अन नाही , बंशीवार सहारौ चाह ।
रहीबर निरखि गयों  कुम्लानी  ,  हे नलिनी रूप नसान ।।
दरपन होतुं रूप तुम लेतूं , लागी को नही दाम ।
ऋतु मैं सुहावन काश को होतूं , पीर बहत सुफलाय  ।।
ऐ! री ! जनम बिन श्वांसन बीतौ, मीरा जासु रहे पछतात् ।
उतिरीं-चढ़िहीं  हियमय धायौ , रिझत नाही घनश्याम ।।
कनक भये तीर अंग लागी , रंजित बैठूं कासै पग  थाम ।
पञ्चभूत सजीं मैं कर तोर  , उर मम् अंतर भूत समान ।।

© vrindaa

घट यों घट्यों ; श्वास सिमट्यों , छूट्यों तनसों प्रान । एक दरस री आस मिटै न , बात-जोंत इक सान ।। लरखत देह टेक अन नाही , बंशीवार सहारौ चाह । रहीबर निरखि गयों कुम्लानी , हे नलिनी रूप नसान ।। दरपन होतुं रूप तुम लेतूं , लागी को नही दाम । ऋतु मैं सुहावन काश को होतूं , पीर बहत सुफलाय ।। ऐ! री ! जनम बिन श्वांसन बीतौ, मीरा जासु रहे पछतात् । उतिरीं-चढ़िहीं हियमय धायौ , रिझत नाही घनश्याम ।। कनक भये तीर अंग लागी , रंजित बैठूं कासै पग थाम । पञ्चभूत सजीं मैं कर तोर , उर मम् अंतर भूत समान ।। © vrindaa

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