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मैं और मेरा प्यार.... कुछ यूँ अधूरें है कि तुम्हारे आने से ही पूरे होंगे गिरधर गोपाल!!

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खुशियां सहज है__जरा मुस्कुरा करके तो देखो! जो सच में भूलने के काबिल है उस गम को आप भूला करके देखो।। © vrindaa

#HappyNewYear  खुशियां सहज है__जरा मुस्कुरा करके तो देखो! 
जो सच में भूलने के काबिल है
 उस गम को आप भूला करके देखो।।

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मनसा वासी नैन सुबास । हठी छैल अवि टेढ़ी जात ।। कन्दर्प सलोनी तीत रूद्र समान । पल को प्रसून इक पल में आर ।। © vrindaa

#जानकारी  मनसा वासी  नैन सुबास ।
 हठी छैल अवि टेढ़ी जात ।।
कन्दर्प सलोनी तीत रूद्र  समान ।
पल को प्रसून इक पल में आर ।।

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मनसा वासी नैन सुबास । हठी छैल अवि टेढ़ी जात ।। कन्दर्प सलोनी तीत रूद्र समान । पल को प्रसून इक पल में आर ।। © vrindaa

8 Love

किसी की बातों में तो कई मुलाकातो में मुझे तु ही नजर आता है । कही की गई हल्की सी मजाक , तेरे अधरों की मुस्कुराहट दिखा जाता है तो कभी हवा बन करके मेरे रूह से तु लिपटने को आता है ।। ये तेरी प्रेम पिपासा कैसी रमणा! कि । तुझे देखते मेरा सुध गया , तु फिर ना मेरे सुध से गया । © vrindaa

 किसी की बातों में तो कई मुलाकातो में मुझे  तु ही नजर आता है । 
कही की गई  हल्की सी मजाक , तेरे अधरों की मुस्कुराहट दिखा जाता है 
तो कभी हवा बन करके  मेरे रूह से  तु लिपटने को आता है ।।
  ये तेरी प्रेम पिपासा कैसी रमणा! 
कि 
। तुझे  देखते मेरा सुध गया , तु फिर ना मेरे सुध से गया ।

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कोई तुमसा नहीं

8 Love

बंधनवार थें मैं बनी बंदिनी , थाँ ही मोर भये रखवार । आप छवि नयन बसी ऐसो , दूजा रूप न और लखाय ।। पूनम रात धरा पांव पखारत् , विधिवत् चन्द्र शिरोमणि नभ छाएं । हरस चहक उठी चकोरी , रमण रमणीय दरस पाएं ।। यां मिलन पियूष सरीखा , वर्णित कुछू न कह जाएं। इहं सो देखूं सूरत लावणी , षड्विशा सुपण सुनाएं ।। रूप रसीला नयन चटकीला , रसीला मन्द मन्द मुस्काय । इक टक लाखूं छबि अनुपम , मन बीच कोटिक देव मनाय ।। निरखत् रूप जां चन्द्र लजाय , वां सुवर्ण श्याम मिलन मोय आएं । नैना नीर बहत मम जस जस , तरत दरस सों जनम सुफलाय ।। © vrindaa

 बंधनवार थें मैं बनी बंदिनी , थाँ ही मोर भये रखवार । 
आप छवि नयन बसी ऐसो , दूजा रूप न  और  लखाय ।।

पूनम रात धरा पांव पखारत्  , विधिवत् चन्द्र शिरोमणि नभ छाएं  ।
हरस चहक उठी चकोरी , रमण रमणीय दरस पाएं ।।

 यां मिलन पियूष सरीखा , वर्णित कुछू न कह जाएं। 
इहं सो देखूं  सूरत लावणी , षड्विशा सुपण सुनाएं ।। 

  रूप रसीला नयन चटकीला , रसीला मन्द मन्द मुस्काय ।  
इक टक लाखूं छबि अनुपम ,  मन बीच कोटिक देव मनाय ।।  

निरखत् रूप जां चन्द्र लजाय , वां सुवर्ण श्याम मिलन मोय आएं  ।
 नैना नीर बहत मम जस जस ,   तरत  दरस सों जनम सुफलाय ।।

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बंधनवार थें मैं बनी बंदिनी , थाँ ही मोर भये रखवार । आप छवि नयन बसी ऐसो , दूजा रूप न और लखाय ।। पूनम रात धरा पांव पखारत् , विधिवत् चन्द्र शिरोमणि नभ छाएं । हरस चहक उठी चकोरी , रमण रमणीय दरस पाएं ।। यां मिलन पियूष सरीखा , वर्णित कुछू न कह जाएं। इहं सो देखूं सूरत लावणी , षड्विशा सुपण सुनाएं ।। रूप रसीला नयन चटकीला , रसीला मन्द मन्द मुस्काय । इक टक लाखूं छबि अनुपम , मन बीच कोटिक देव मनाय ।। निरखत् रूप जां चन्द्र लजाय , वां सुवर्ण श्याम मिलन मोय आएं । नैना नीर बहत मम जस जस , तरत दरस सों जनम सुफलाय ।। © vrindaa

7 Love

मुस्कुराने से सब कुछ आसान हो जाता है ; बस मुस्कुराना ही आसान नही है । © vrindaa

 मुस्कुराने से सब कुछ आसान हो जाता है ;  
बस मुस्कुराना ही आसान नही है ।

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मुस्कुराने से सब कुछ आसान हो जाता है ; बस मुस्कुराना ही आसान नही है । © vrindaa

6 Love

घट यों घट्यों ; श्वास सिमट्यों , छूट्यों तनसों प्रान । एक दरस री आस मिटै न , बात-जोंत इक सान ।। लरखत देह टेक अन नाही , बंशीवार सहारौ चाह । रहीबर निरखि गयों कुम्लानी , हे नलिनी रूप नसान ।। दरपन होतुं रूप तुम लेतूं , लागी को नही दाम । ऋतु मैं सुहावन काश को होतूं , पीर बहत सुफलाय ।। ऐ! री ! जनम बिन श्वांसन बीतौ, मीरा जासु रहे पछतात् । उतिरीं-चढ़िहीं हियमय धायौ , रिझत नाही घनश्याम ।। कनक भये तीर अंग लागी , रंजित बैठूं कासै पग थाम । पञ्चभूत सजीं मैं कर तोर , उर मम् अंतर भूत समान ।। © vrindaa

 घट यों घट्यों ; श्वास सिमट्यों ,  छूट्यों  तनसों प्रान । 
एक दरस री आस मिटै न , बात-जोंत इक सान ।।
लरखत देह टेक अन नाही , बंशीवार सहारौ चाह ।
रहीबर निरखि गयों  कुम्लानी  ,  हे नलिनी रूप नसान ।।
दरपन होतुं रूप तुम लेतूं , लागी को नही दाम ।
ऋतु मैं सुहावन काश को होतूं , पीर बहत सुफलाय  ।।
ऐ! री ! जनम बिन श्वांसन बीतौ, मीरा जासु रहे पछतात् ।
उतिरीं-चढ़िहीं  हियमय धायौ , रिझत नाही घनश्याम ।।
कनक भये तीर अंग लागी , रंजित बैठूं कासै पग  थाम ।
पञ्चभूत सजीं मैं कर तोर  , उर मम् अंतर भूत समान ।।

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घट यों घट्यों ; श्वास सिमट्यों , छूट्यों तनसों प्रान । एक दरस री आस मिटै न , बात-जोंत इक सान ।। लरखत देह टेक अन नाही , बंशीवार सहारौ चाह । रहीबर निरखि गयों कुम्लानी , हे नलिनी रूप नसान ।। दरपन होतुं रूप तुम लेतूं , लागी को नही दाम । ऋतु मैं सुहावन काश को होतूं , पीर बहत सुफलाय ।। ऐ! री ! जनम बिन श्वांसन बीतौ, मीरा जासु रहे पछतात् । उतिरीं-चढ़िहीं हियमय धायौ , रिझत नाही घनश्याम ।। कनक भये तीर अंग लागी , रंजित बैठूं कासै पग थाम । पञ्चभूत सजीं मैं कर तोर , उर मम् अंतर भूत समान ।। © vrindaa

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