वो यादों में ही सही पर ज़िन्दा है अभी बंद आँखो के | हिंदी Love

"वो यादों में ही सही पर ज़िन्दा है अभी बंद आँखो के दरीचे पर खड़े मिलते है कभी खुली आँखो को बहुत देर तक एहसास रहता है ये कि तुम आये थे अभी । जैसे पहाड़ो की सतह पर कितने पेड़ खड़े मिलते है हज़ारो साल पहाड़ो को बिखरने से बचाते है तुम्हारी यादें भी मुझे संभालती है और मेरी उम्र तक तुम्हारा एहसास करवाती है मैं तुम्हे अब भी महसूस करता हूँ बहुत तीव्र भाव से आलिंगन करता हूँ आँसू भी बहुत अंदर तक उतरते है भीतर मन को तर्पण करते है उस घाट पर नाविक इतज़ार में रहता है कितना मुश्किल हो जाता है जब लहरें डुबोती भी नहीं और नाँव पर कोई आता भी नहीं मेरा भी कुछ ऐसा ही है ... तुम बिन मैं कुछ भी नहीं तुम बिन मैं कुछ भी नहीं एहसास , दर्द और जीवन यही मैं हूँ ओर कुछ नहीं एक बूंद हूँ बारिश की जो गिरकर भी ज़मी से मिली नहीं मैं अधूरा हूँ उस साज की तरह जो अभी तक हाथों के स्पर्श से मिला नहीं मैं वो रात हूँ जो चाँद से अभी मिली नहीं मैं वो आँख हूँ जो कभी खुली नहीं इन सब में तुम हो और कुछ भी नहीं यही मैं हूँ तेरे नाम से इसके सिवा कुछ भी नहीं ।। ©Anurag Mankhand"

 वो यादों में ही सही पर ज़िन्दा है अभी 
बंद आँखो के दरीचे पर खड़े मिलते है कभी 
खुली आँखो को बहुत देर तक एहसास रहता है ये 
कि तुम आये थे अभी ।

जैसे पहाड़ो की सतह पर कितने पेड़ खड़े मिलते है 
हज़ारो साल पहाड़ो को बिखरने से बचाते है 
तुम्हारी यादें भी मुझे संभालती है 
और मेरी उम्र तक तुम्हारा एहसास करवाती है 

मैं तुम्हे अब भी महसूस करता हूँ 
बहुत तीव्र भाव से आलिंगन करता हूँ 
आँसू भी बहुत अंदर तक उतरते है 
भीतर मन को तर्पण करते है 

उस घाट पर नाविक इतज़ार में रहता है 
कितना मुश्किल हो जाता है 
जब लहरें डुबोती भी नहीं और 
नाँव पर कोई आता भी नहीं 
मेरा भी कुछ ऐसा ही है ...
तुम बिन मैं कुछ भी नहीं 
तुम बिन मैं कुछ भी नहीं 

एहसास , दर्द और जीवन 
यही मैं हूँ  ओर कुछ नहीं 
एक बूंद हूँ बारिश की 
जो गिरकर भी ज़मी से मिली नहीं

मैं अधूरा हूँ  उस साज की तरह
जो अभी तक हाथों के स्पर्श से मिला नहीं 
मैं वो रात हूँ जो चाँद से अभी मिली नहीं 
मैं वो आँख हूँ जो कभी खुली नहीं 

इन सब में तुम हो और कुछ भी नहीं
यही मैं हूँ तेरे नाम से 
इसके सिवा कुछ भी  नहीं ।।

©Anurag Mankhand

वो यादों में ही सही पर ज़िन्दा है अभी बंद आँखो के दरीचे पर खड़े मिलते है कभी खुली आँखो को बहुत देर तक एहसास रहता है ये कि तुम आये थे अभी । जैसे पहाड़ो की सतह पर कितने पेड़ खड़े मिलते है हज़ारो साल पहाड़ो को बिखरने से बचाते है तुम्हारी यादें भी मुझे संभालती है और मेरी उम्र तक तुम्हारा एहसास करवाती है मैं तुम्हे अब भी महसूस करता हूँ बहुत तीव्र भाव से आलिंगन करता हूँ आँसू भी बहुत अंदर तक उतरते है भीतर मन को तर्पण करते है उस घाट पर नाविक इतज़ार में रहता है कितना मुश्किल हो जाता है जब लहरें डुबोती भी नहीं और नाँव पर कोई आता भी नहीं मेरा भी कुछ ऐसा ही है ... तुम बिन मैं कुछ भी नहीं तुम बिन मैं कुछ भी नहीं एहसास , दर्द और जीवन यही मैं हूँ ओर कुछ नहीं एक बूंद हूँ बारिश की जो गिरकर भी ज़मी से मिली नहीं मैं अधूरा हूँ उस साज की तरह जो अभी तक हाथों के स्पर्श से मिला नहीं मैं वो रात हूँ जो चाँद से अभी मिली नहीं मैं वो आँख हूँ जो कभी खुली नहीं इन सब में तुम हो और कुछ भी नहीं यही मैं हूँ तेरे नाम से इसके सिवा कुछ भी नहीं ।। ©Anurag Mankhand

सिर्फ मुझमें तुम

#youandme

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