Anurag Mankhand

Anurag Mankhand Lives in Phagwara, Punjab, India

सिर्फ खुद की भावनाओं को ही लिखता हूँ । दर्द से बहुत गहरी बात करता हूँ फिर जाकर लफ़्ज मिलते है । बेमिसाल सा व्यक्तित्व है कविताओं का । उतरती है तो रुकती नहीं । पर जब बिमार होती है तो लंबा इंतजार करवाती है प्रेसी की तरह

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#RapefreeIndiA #nightthoughts  White 
मोमीता देबनाथ : एक ओर बेटी 
            
                    


सिसकती रहीं और बेबस रहीं 
वो हैवानियत से भी ज्यादा कुछ 
और ज़िस्म से भी ज्यादा कुछ 
अपनी रूह पर सहती रहीं 
माँ दुर्गा के इस शहर में 
बेटी आज मारी गयी और 
ज़िस्म से नौची गयी 

वो आसूँओ की गूंज कहीं 
दीवारो से टकराती रहीं
बहती सिसकियां और लहू आँखो से 
ज़मीन भी मातम मनाती रहीं 
माँ दुर्गा के इस शहर में 
बेटी आज तड़पती रही और 
ज़िस्म से नौची गयी 

दर्द की पराकाष्ठा से भी कुछ परे है तो  (चरमसीमा)
उस बेटी ने सही होगी 
उन दरिन्दों की क्रूरता की पराकाष्ठा से 
हवा भी सहमी होगी 
कितनी डरी और लाचार होगी वो तब 
जब वहशीपन की इन्तिहा हुई होगी 

क्या गुनाह था उसका , इन से पूछो तो सही 
परवाज़ के लिए तैयार थी वो  (उड़ान) 
एक ख़्वाब था उसका 
और वो गरूर था माँ- बाप का 
कितनी बिजली गिराई होगी 
कितनी पीड़ा से वो निकली होगी 

इन दरिन्दों को सिर्फ हवस दिखी ,
न उसमें बहन दिखी,  न उसमें माँ दिखी 
न गर्वित करने वाली समाज की वो औरत दिखी 
न दिखी उसमें एक उम्मीद 
न दिखी उसमें एक ज़िन्दगी 
न दिखी घर से निकलते वक्त चोखट पर खड़ी वो औरत 
न दिखी जन्म देने वाली और दुवा पढ़ने वाली वो औरत 
न दिखी खुद की वो छोटी नन्ही सी परी बिटिया 
दिख जाती तो शायद 
आज 'मोमीता' जी पाती , जिन्दा होती

©Anurag Mankhand
#Stoprape  मोमीता देबनाथ : एक ओर बेटी 
            August 23, 2024 To September 10,2024 
                       09:24 A.M. To 12: 53 A.M. 


सिसकती रहीं और बेबस रहीं 
वो हैवानियत से भी ज्यादा कुछ 
और ज़िस्म से भी ज्यादा कुछ 
अपनी रूह पर सहती रहीं 
माँ दुर्गा के इस शहर में 
बेटी आज मारी गयी और 
ज़िस्म से नौची गयी 

वो आसूँओ की गूंज कहीं 
दीवारो से टकराती रहीं
बहती सिसकियां और लहू आँखो से 
ज़मीन भी मातम मनाती रहीं 
माँ दुर्गा के इस शहर में 
बेटी आज तड़पती रही और 
ज़िस्म से नौची गयी 

दर्द की पराकाष्ठा से भी कुछ परे है तो  (चरमसीमा)
उस बेटी ने सही होगी 
उन दरिन्दों की क्रूरता की पराकाष्ठा से 
हवा भी सहमी होगी 
कितनी डरी और लाचार होगी वो तब 
जब वहशीपन की इन्तिहा हुई होगी 

क्या गुनाह था उसका , इन से पूछो तो सही 
परवाज़ के लिए तैयार थी वो  (उड़ान) 
एक ख़्वाब था उसका 
और वो गरूर था माँ- बाप का 
कितनी बिजली गिराई होगी 
कितनी पीड़ा से वो निकली होगी 

इन दरिन्दों को सिर्फ हवस दिखी ,
न उसमें बहन दिखी,  न उसमें माँ दिखी 
न गर्वित करने वाली समाज की वो औरत दिखी 
न दिखी उसमें एक उम्मीद 
न दिखी उसमें एक ज़िन्दगी 
न दिखी घर से निकलते वक्त चोखट पर खड़ी वो औरत 
न दिखी जन्म देने वाली और दुवा पढ़ने वाली वो औरत 
न दिखी खुद की वो छोटी नन्ही सी परी बिटिया 
दिख जाती तो शायद 
आज 'मोमीता' जी पाती , जिन्दा होती

©Anurag Mankhand

#Stoprape Tribute To Momita Debnath

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वो यादों में ही सही पर ज़िन्दा है अभी बंद आँखो के दरीचे पर खड़े मिलते है कभी खुली आँखो को बहुत देर तक एहसास रहता है ये कि तुम आये थे अभी । जैसे पहाड़ो की सतह पर कितने पेड़ खड़े मिलते है हज़ारो साल पहाड़ो को बिखरने से बचाते है तुम्हारी यादें भी मुझे संभालती है और मेरी उम्र तक तुम्हारा एहसास करवाती है मैं तुम्हे अब भी महसूस करता हूँ बहुत तीव्र भाव से आलिंगन करता हूँ आँसू भी बहुत अंदर तक उतरते है भीतर मन को तर्पण करते है उस घाट पर नाविक इतज़ार में रहता है कितना मुश्किल हो जाता है जब लहरें डुबोती भी नहीं और नाँव पर कोई आता भी नहीं मेरा भी कुछ ऐसा ही है ... तुम बिन मैं कुछ भी नहीं तुम बिन मैं कुछ भी नहीं एहसास , दर्द और जीवन यही मैं हूँ ओर कुछ नहीं एक बूंद हूँ बारिश की जो गिरकर भी ज़मी से मिली नहीं मैं अधूरा हूँ उस साज की तरह जो अभी तक हाथों के स्पर्श से मिला नहीं मैं वो रात हूँ जो चाँद से अभी मिली नहीं मैं वो आँख हूँ जो कभी खुली नहीं इन सब में तुम हो और कुछ भी नहीं यही मैं हूँ तेरे नाम से इसके सिवा कुछ भी नहीं ।। ©Anurag Mankhand

#youandme  वो यादों में ही सही पर ज़िन्दा है अभी 
बंद आँखो के दरीचे पर खड़े मिलते है कभी 
खुली आँखो को बहुत देर तक एहसास रहता है ये 
कि तुम आये थे अभी ।

जैसे पहाड़ो की सतह पर कितने पेड़ खड़े मिलते है 
हज़ारो साल पहाड़ो को बिखरने से बचाते है 
तुम्हारी यादें भी मुझे संभालती है 
और मेरी उम्र तक तुम्हारा एहसास करवाती है 

मैं तुम्हे अब भी महसूस करता हूँ 
बहुत तीव्र भाव से आलिंगन करता हूँ 
आँसू भी बहुत अंदर तक उतरते है 
भीतर मन को तर्पण करते है 

उस घाट पर नाविक इतज़ार में रहता है 
कितना मुश्किल हो जाता है 
जब लहरें डुबोती भी नहीं और 
नाँव पर कोई आता भी नहीं 
मेरा भी कुछ ऐसा ही है ...
तुम बिन मैं कुछ भी नहीं 
तुम बिन मैं कुछ भी नहीं 

एहसास , दर्द और जीवन 
यही मैं हूँ  ओर कुछ नहीं 
एक बूंद हूँ बारिश की 
जो गिरकर भी ज़मी से मिली नहीं

मैं अधूरा हूँ  उस साज की तरह
जो अभी तक हाथों के स्पर्श से मिला नहीं 
मैं वो रात हूँ जो चाँद से अभी मिली नहीं 
मैं वो आँख हूँ जो कभी खुली नहीं 

इन सब में तुम हो और कुछ भी नहीं
यही मैं हूँ तेरे नाम से 
इसके सिवा कुछ भी  नहीं ।।

©Anurag Mankhand

सिर्फ मुझमें तुम #youandme

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आदमी की औकात बताता आदमी बंधा हुआ सा खुद को आज़ाद बताता आदमी आब पर चलता हुवा आबरू बचाता आदमी देखा है मैंने औक़ात से आगे जाता हुवा आदमी ख़ाक होता आदमी मालूम नही किस ख़ुमार में है आदमी काग़ज के ख्याल और ठिकाना बनाता आदमी गर्द होते जिस्म को सजाता आदमी सब कुछ जानता है आदमी फिर भी खुद को खाता है आदमी नज़दीक है क़यामत के दिन फिर भी अपनी कब्र पर नाचता आदमी ये भगवान का बनाया है दोस्तो नाज़ से भरा हुवा है आदमी पागल हुवा घुमता है आदमी आदमी की औकात बताता आदमी ।। ©Anurag ELahi

#Winter #Aadmi  आदमी की औकात बताता आदमी 
बंधा हुआ सा 
खुद को आज़ाद बताता आदमी 

आब पर चलता हुवा     
आबरू बचाता आदमी 
देखा है मैंने 
औक़ात से आगे जाता हुवा आदमी 

ख़ाक होता आदमी 
मालूम नही किस ख़ुमार में है आदमी 
काग़ज के ख्याल और ठिकाना बनाता आदमी 
गर्द होते जिस्म को सजाता आदमी 

सब कुछ जानता है आदमी 
फिर भी खुद को खाता है आदमी 
नज़दीक है क़यामत के दिन 
फिर भी 
अपनी कब्र पर नाचता आदमी 

ये भगवान का बनाया है दोस्तो       
नाज़ से भरा हुवा है आदमी     
पागल हुवा घुमता है आदमी 
आदमी की औकात बताता आदमी ।।

©Anurag ELahi

वो रात भूलती नहीं जब पहली दफा देखा था तुम्हें ज़ोरो से धड़का था दिल और नज़रो ने पहली मर्तबा बोला था कुछ सर्द रात में जलती आग के पास बैठी थी तुम और मुझे तुम रौशनी सी नज़र आ रही थी दोस्तों की थी महफिल जो तुम्हारी पर तुम सब में चाँद नज़र आ रही थी कोई वक्त नहीं होता बिमार हो जायें कोई बिना जानें खास हो जायें कोई ये मिज़ाज़- ए-इश्क में तहजीब कहाँ होती है होठों की बात नज़रों से बयां होती है फिर एक दौर था जब मुसाफ़िर बनें थे मुलाकातें थी कम हमारी , फिर भी साथ चलें थे पहरेदार थी तुम पर रस्में और रवायतें इश्क फिर हारा था तुम्हारी दी हुई कसमों के आगे उम्र के उस दौर में मिली हो जाकर जब दिल को दवा और दुवा दोनों की जरूरत है मैं आज भी उस रात में ठहरा हूँ इतज़ार में तेरे अब तो आ जाओ मुझे बर्बाद करने अब तो आ ही जाओ आबाद करने ।। ©Anurag ELahi

#EkMohabhatAsiBhi #Couple  वो रात भूलती नहीं 
जब पहली दफा देखा था तुम्हें 
ज़ोरो से धड़का था दिल
और नज़रो ने पहली मर्तबा बोला था कुछ 

सर्द रात में जलती आग के पास बैठी थी तुम 
और मुझे तुम रौशनी सी नज़र आ रही थी 
दोस्तों की थी महफिल जो तुम्हारी 
पर तुम सब में चाँद नज़र आ रही थी 

कोई वक्त नहीं होता बिमार हो जायें कोई 
बिना जानें खास हो जायें कोई 
ये मिज़ाज़- ए-इश्क में तहजीब कहाँ होती है 
होठों की बात नज़रों से बयां होती है 

फिर एक दौर था जब मुसाफ़िर बनें थे 
मुलाकातें थी कम हमारी , फिर भी साथ चलें थे 

पहरेदार थी तुम पर रस्में और रवायतें 
इश्क फिर हारा था 
तुम्हारी दी हुई कसमों के आगे 

उम्र के उस दौर में मिली हो जाकर 
जब दिल को दवा और दुवा दोनों की जरूरत है 
मैं आज भी उस रात में ठहरा हूँ इतज़ार में तेरे 
अब तो आ जाओ मुझे बर्बाद करने 
अब तो आ ही जाओ आबाद करने ।।

©Anurag ELahi

ज़माने से गुफ़्तगु का असर तुझ पर ये है वस्ल की रात में बदल जाती हो तुम मुकम्मल इश्क से मसला रहा है ज़माने को कितने बयाबान गवाह है इसके आसमां पर कहीं दूर एक शहर है ख़ूब-रू सा कबूल होते वहां सभी रूह वाले मैं तुझमें मिलना चाहता हूँ इस कदर के ख़ाक होकर भी रहना चाहता हूँ तुझ में और हिज्र में मरना कौन चाहता है फ़क़त गोद में हो सर मेरा और बुझ जाऊँ तेरे आँसू से वहीं दूर ही रहा करों इस शहर से इल्तिजा है मेरी ख़ालिक-ए-कुल ने हमें बारिश और बादल सा जुफ़्त बनाया है उन किनारों पर फिसलन है बहुत मेरे हाथों को थाम लो तसल्ली रहेंगी मुझमें होसला है डूबने का मैं मर भी जाऊँ तेरे काम से ऐसी मौत पर दिल को तसल्ली रहेंगी ©Anurag ELahi

#वस्लकीरात #Darknight  ज़माने से गुफ़्तगु का असर तुझ पर ये है 
वस्ल की रात में बदल जाती हो तुम 

मुकम्मल इश्क से मसला रहा है ज़माने को 
कितने बयाबान गवाह है इसके 

आसमां पर कहीं दूर एक शहर है ख़ूब-रू सा 
कबूल होते वहां सभी रूह वाले 

मैं तुझमें मिलना चाहता हूँ इस कदर 
के ख़ाक होकर भी रहना चाहता हूँ तुझ में 
और हिज्र में मरना कौन चाहता है 
फ़क़त गोद में हो सर मेरा और 
बुझ जाऊँ तेरे आँसू से वहीं 

दूर ही रहा करों इस शहर से इल्तिजा है मेरी 
ख़ालिक-ए-कुल ने हमें 
बारिश और बादल सा जुफ़्त बनाया है 

उन किनारों पर फिसलन है बहुत 
मेरे हाथों को थाम लो तसल्ली रहेंगी 
मुझमें होसला है डूबने का 
मैं मर भी जाऊँ तेरे काम से 
ऐसी मौत पर दिल को तसल्ली रहेंगी

©Anurag ELahi
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