ज़माने से गुफ़्तगु का असर तुझ पर ये है वस्ल की रा | हिंदी Shayari

"ज़माने से गुफ़्तगु का असर तुझ पर ये है वस्ल की रात में बदल जाती हो तुम मुकम्मल इश्क से मसला रहा है ज़माने को कितने बयाबान गवाह है इसके आसमां पर कहीं दूर एक शहर है ख़ूब-रू सा कबूल होते वहां सभी रूह वाले मैं तुझमें मिलना चाहता हूँ इस कदर के ख़ाक होकर भी रहना चाहता हूँ तुझ में और हिज्र में मरना कौन चाहता है फ़क़त गोद में हो सर मेरा और बुझ जाऊँ तेरे आँसू से वहीं दूर ही रहा करों इस शहर से इल्तिजा है मेरी ख़ालिक-ए-कुल ने हमें बारिश और बादल सा जुफ़्त बनाया है उन किनारों पर फिसलन है बहुत मेरे हाथों को थाम लो तसल्ली रहेंगी मुझमें होसला है डूबने का मैं मर भी जाऊँ तेरे काम से ऐसी मौत पर दिल को तसल्ली रहेंगी ©Anurag ELahi"

 ज़माने से गुफ़्तगु का असर तुझ पर ये है 
वस्ल की रात में बदल जाती हो तुम 

मुकम्मल इश्क से मसला रहा है ज़माने को 
कितने बयाबान गवाह है इसके 

आसमां पर कहीं दूर एक शहर है ख़ूब-रू सा 
कबूल होते वहां सभी रूह वाले 

मैं तुझमें मिलना चाहता हूँ इस कदर 
के ख़ाक होकर भी रहना चाहता हूँ तुझ में 
और हिज्र में मरना कौन चाहता है 
फ़क़त गोद में हो सर मेरा और 
बुझ जाऊँ तेरे आँसू से वहीं 

दूर ही रहा करों इस शहर से इल्तिजा है मेरी 
ख़ालिक-ए-कुल ने हमें 
बारिश और बादल सा जुफ़्त बनाया है 

उन किनारों पर फिसलन है बहुत 
मेरे हाथों को थाम लो तसल्ली रहेंगी 
मुझमें होसला है डूबने का 
मैं मर भी जाऊँ तेरे काम से 
ऐसी मौत पर दिल को तसल्ली रहेंगी

©Anurag ELahi

ज़माने से गुफ़्तगु का असर तुझ पर ये है वस्ल की रात में बदल जाती हो तुम मुकम्मल इश्क से मसला रहा है ज़माने को कितने बयाबान गवाह है इसके आसमां पर कहीं दूर एक शहर है ख़ूब-रू सा कबूल होते वहां सभी रूह वाले मैं तुझमें मिलना चाहता हूँ इस कदर के ख़ाक होकर भी रहना चाहता हूँ तुझ में और हिज्र में मरना कौन चाहता है फ़क़त गोद में हो सर मेरा और बुझ जाऊँ तेरे आँसू से वहीं दूर ही रहा करों इस शहर से इल्तिजा है मेरी ख़ालिक-ए-कुल ने हमें बारिश और बादल सा जुफ़्त बनाया है उन किनारों पर फिसलन है बहुत मेरे हाथों को थाम लो तसल्ली रहेंगी मुझमें होसला है डूबने का मैं मर भी जाऊँ तेरे काम से ऐसी मौत पर दिल को तसल्ली रहेंगी ©Anurag ELahi

#वस्लकीरात

#Darknight

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