White फ़िके से दिन है सियाह रातें है। अधूरे से कि | हिंदी Poetry

"White फ़िके से दिन है सियाह रातें है। अधूरे से किस्से है अनकही बातें है। एक धुंधली सी शक़्ल बार बार बनाते है, बन जाए कुछ तो पहचान नहीं पाते है। अब क्या बताएं हाल ए हयात इन दिनों, अपनों से रूठें है और ग़ैरों में जाते है। जो पूछे कोई तो ख़ामोश बिलकुल, जो न पूछे तो हर बात बताते हैं। न कोई ख़्याल है न ख़ाब कोई, भला ऐसे भी कोई दिन आते है। अव्वल तो ये के ज़िंदगी बदतर है, और उस पे ये के लो जिए जाते है। ज़िंदगी अब ऐसे पड़ाव पर है निशा, गोया पंख फैलाए पंछी उड़ नहीं पाते है। ©Ritu Nisha"

 White फ़िके से दिन है सियाह रातें है। 
अधूरे से किस्से है अनकही बातें है।

एक धुंधली सी शक़्ल बार बार बनाते है, 
बन जाए कुछ तो पहचान नहीं पाते है। 

अब क्या बताएं हाल ए हयात इन दिनों, 
अपनों से रूठें है और ग़ैरों में जाते है। 

जो पूछे कोई तो ख़ामोश बिलकुल, 
जो न पूछे तो हर बात बताते हैं। 

न कोई ख़्याल है न ख़ाब कोई, 
भला ऐसे भी कोई दिन आते है। 

अव्वल तो ये के ज़िंदगी बदतर है, 
और उस पे ये के लो जिए जाते है। 

ज़िंदगी अब ऐसे पड़ाव पर है निशा, 
गोया पंख फैलाए पंछी उड़ नहीं पाते है।

©Ritu Nisha

White फ़िके से दिन है सियाह रातें है। अधूरे से किस्से है अनकही बातें है। एक धुंधली सी शक़्ल बार बार बनाते है, बन जाए कुछ तो पहचान नहीं पाते है। अब क्या बताएं हाल ए हयात इन दिनों, अपनों से रूठें है और ग़ैरों में जाते है। जो पूछे कोई तो ख़ामोश बिलकुल, जो न पूछे तो हर बात बताते हैं। न कोई ख़्याल है न ख़ाब कोई, भला ऐसे भी कोई दिन आते है। अव्वल तो ये के ज़िंदगी बदतर है, और उस पे ये के लो जिए जाते है। ज़िंदगी अब ऐसे पड़ाव पर है निशा, गोया पंख फैलाए पंछी उड़ नहीं पाते है। ©Ritu Nisha

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