रिश्ते (समझ के साथ ही)
जब भी कभी कोशिश होती है रिश्ते को समझने की
तब में सही तू गलत या तू सही में गलत नही होता है
जो भी होता है वह दोनो की सहमति से ही होता है
हाँ कभी कुछ बातो मे समझौता भी जरूरी होता है
जहाँ अहम से ज्यादा रिश्ते को महत्व दिया जाए
और मेरा की जगह हमारा ये उच्चारण होने लगे
वही रिश्तो की पक्की समझ और प्यार सही होता है
बाकी तो आज के जमाने मे पल में प्यार हो जाता है
और कुछ ही समय मे सब कुछ समाप्त हो जाता है
क्यूँकि वह परिस्थिति सिर्फ आकांक्षा के लिए ही थी
प्यार, भरोसा, अपनापन ये सब कुछ नही था
अपेक्षा से बने रिश्तो की आयु काम होती ही होगी
और जहाँ होगा सच्चा प्यार
वही रब की हाजरी होगी
©Parth Vasvani
#लब्ज_ए_पार्थ