White मेरे पेशानी की परेशानी सारी, तेरे हाथो के अक | हिंदी कविता

"White मेरे पेशानी की परेशानी सारी, तेरे हाथो के अक्षत से क्षर हुई। मेरा उद्धम जहां भर का सारा, तुमने इक कलावे से बांध लिया। बचपन था तो त्योहार और था, अब डाक से कितना ही प्यार पहुंचेगा। वक्त ने जो दूरी है बढ़ाई कम नहीं होने, अब छोड़ो भी आंखो से कितना प्यार झरेगा।। और ये आखिरी दिन सावन का, क्या संताप हरेगा, क्या तय करेगा। अब छोड़ो भी आंखो से कितना प्यार झरेगा।। ©गीतेय..."

 White मेरे पेशानी की परेशानी सारी,
तेरे हाथो के अक्षत से क्षर हुई।
मेरा उद्धम जहां भर का सारा,
तुमने इक कलावे से बांध लिया।
बचपन था तो त्योहार और था,
अब डाक से कितना ही प्यार पहुंचेगा।
वक्त ने जो दूरी है बढ़ाई कम नहीं होने,
अब छोड़ो भी आंखो से कितना प्यार झरेगा।।
और ये आखिरी दिन सावन का,
क्या संताप हरेगा, क्या तय करेगा।
अब छोड़ो भी आंखो से कितना प्यार झरेगा।।

©गीतेय...

White मेरे पेशानी की परेशानी सारी, तेरे हाथो के अक्षत से क्षर हुई। मेरा उद्धम जहां भर का सारा, तुमने इक कलावे से बांध लिया। बचपन था तो त्योहार और था, अब डाक से कितना ही प्यार पहुंचेगा। वक्त ने जो दूरी है बढ़ाई कम नहीं होने, अब छोड़ो भी आंखो से कितना प्यार झरेगा।। और ये आखिरी दिन सावन का, क्या संताप हरेगा, क्या तय करेगा। अब छोड़ो भी आंखो से कितना प्यार झरेगा।। ©गीतेय...

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