हुस्न , इश्क़ खानदानी हुं, जिस्म को तेरे छू नहीं स | हिंदी शायरी

"हुस्न , इश्क़ खानदानी हुं, जिस्म को तेरे छू नहीं सकता, खुद को कभी, खुश्बू में बदल कर देख, तुझे . . . रोम रोम न बसा लूं _ फिर कहना! [अरुण प्रधान] ©Arun pradhan"

 हुस्न , इश्क़ खानदानी हुं, जिस्म को तेरे छू नहीं सकता, 
खुद को कभी, खुश्बू में बदल कर देख, तुझे
. . . रोम रोम न बसा लूं _ फिर कहना! 
[अरुण प्रधान]

©Arun pradhan

हुस्न , इश्क़ खानदानी हुं, जिस्म को तेरे छू नहीं सकता, खुद को कभी, खुश्बू में बदल कर देख, तुझे . . . रोम रोम न बसा लूं _ फिर कहना! [अरुण प्रधान] ©Arun pradhan

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