बिगड़ैल हैं यादें,
रात की तन्हाई में जागती हैं।
खामोशी की चादर में लिपटी,
दिल की गलियों में बेखौफ टहलती हैं।
कभी बरसों पुराने किस्से सुनाती हैं,
कभी अधूरे ख्वाबों के जख्मों को कुरेदती हैं।
कभी किसी अपने की हंसी का शोर लाती हैं,
तो कभी बिछड़े लम्हों की कसक में डूब जाती हैं।
अधूरी ख्वाहिशों के धागे से बंधी,
ये यादें चुपके से दिल को झकझोरती हैं।
कभी बेचैन कर देती हैं,
कभी खामोशियों में गुम हो जाती हैं।
बिगड़ैल हैं यादें,
देर रात को टहलने निकलती हैं।
कभी सुकून देती हैं,
तो कभी आहिस्ता से दर्द बनकर छू जाती हैं।
©silent_03
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