वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में | हिंदी Motivation

"वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में, रात होते ही हम खो जाते थे संदेशों की बातों में! सुबह के आए संदेशों के उत्तर को देते थे फुर्सत की रातों में , वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। दिन पर दिन बातों का होना हर बातों को साझा करना, किसी बात पर चुटकी लेना किसी बात पर हंस देना! और वो एक दिन का बात ना होना उदासी देती थी सुबह की यादों में, वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। हर रोज के बीते पल को कहना सुबह से लेकर शाम का ढलना, वो आने वाले कल का होना कई समस्याओं से हल्का होना! यूं प्यार से उनका प्यारे कहना सुकून देती थी रातों में, वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। बिन सोचे समझे कुछ भी कहना ना कुछ कह कर भी सब कुछ कहना , बिना कॉल किए बातें करना बातों को रातों तक होना! बेवजह का वो चिंता करना हमारी गलतियों पर उनका निंदा करना, खो जाते थे हम उनकी बातों में! वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों मे। किसी बात पर ताना देना कभी-कभी बहाना देना, यू मेरे दिल का उन पर मरना और हंस के उनका ना कहना! फिर भी मेरा उन पर मरना खोने के डर से दोस्ती करना, ना उनको कोई फर्क पड़ना ना दिल का मेरे दर्द पढ़ना! मेरे जज्बातों को हल्के में लेना जो सताती है मुझे यादों में, वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रात में । रोज रात संगीत सुनना उनके लिए मेरा गीत कहना, ओ बिन बोले हर चीज कहना मेरा उनसे प्रीत करना! हमेशा मेरा जिद करना उनसे मेरा मीत करना, ना हम समझ सके उनके जज्बातों को ! वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। यूं पास आकर दूर होना दूर जाकर पास आना, कभी मिलने की चाह ना करना मन मर्जी से बातें करना! फिर मेरा उनसे मिलने जाना जल्दी में मेरा वापस आना, ना खुलकर उनसे बातें करना ना आंखों से आंखों का मिलना! जो जलाती है मुझे रातों में, वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रात में। ©Raj"

 वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में,
रात होते ही हम खो जाते थे संदेशों की बातों में!
सुबह के आए संदेशों के उत्तर को देते थे फुर्सत की रातों में ,
वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। 

दिन पर दिन बातों का होना हर बातों को साझा करना, 
किसी बात पर चुटकी लेना किसी बात पर हंस देना!
और वो एक दिन का बात ना होना उदासी देती थी सुबह की यादों में, 
वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में।

हर रोज के बीते पल को कहना सुबह से लेकर शाम का ढलना, 
वो आने वाले कल का होना कई समस्याओं से हल्का होना!
यूं प्यार से उनका प्यारे कहना सुकून देती थी रातों में, 
वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में।

बिन सोचे समझे कुछ भी कहना ना कुछ कह कर भी सब कुछ कहना ,
बिना कॉल किए बातें करना बातों को रातों तक होना!
बेवजह का वो चिंता करना हमारी गलतियों पर उनका निंदा करना,
खो जाते थे हम उनकी बातों में! 
वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों मे।

किसी बात पर ताना देना कभी-कभी बहाना देना, 
यू मेरे दिल का उन पर मरना और हंस के उनका ना कहना! 
फिर भी मेरा उन पर मरना खोने के डर से दोस्ती करना,
ना उनको कोई फर्क पड़ना ना दिल का मेरे दर्द पढ़ना! 
मेरे जज्बातों को हल्के में लेना जो सताती है मुझे यादों में,
वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रात में ।

रोज रात संगीत सुनना उनके लिए मेरा गीत कहना, 
ओ बिन बोले हर चीज कहना मेरा उनसे प्रीत करना! 
हमेशा मेरा जिद करना उनसे मेरा मीत करना,
ना हम समझ सके उनके जज्बातों को !
वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में।

यूं पास आकर दूर होना दूर जाकर पास आना, 
कभी मिलने की चाह ना करना मन मर्जी से बातें करना!
फिर मेरा उनसे मिलने जाना जल्दी में मेरा वापस आना, 
ना खुलकर उनसे बातें करना ना आंखों से आंखों का मिलना!
जो जलाती है मुझे रातों में, 
वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रात में।

©Raj

वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में, रात होते ही हम खो जाते थे संदेशों की बातों में! सुबह के आए संदेशों के उत्तर को देते थे फुर्सत की रातों में , वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। दिन पर दिन बातों का होना हर बातों को साझा करना, किसी बात पर चुटकी लेना किसी बात पर हंस देना! और वो एक दिन का बात ना होना उदासी देती थी सुबह की यादों में, वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। हर रोज के बीते पल को कहना सुबह से लेकर शाम का ढलना, वो आने वाले कल का होना कई समस्याओं से हल्का होना! यूं प्यार से उनका प्यारे कहना सुकून देती थी रातों में, वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। बिन सोचे समझे कुछ भी कहना ना कुछ कह कर भी सब कुछ कहना , बिना कॉल किए बातें करना बातों को रातों तक होना! बेवजह का वो चिंता करना हमारी गलतियों पर उनका निंदा करना, खो जाते थे हम उनकी बातों में! वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों मे। किसी बात पर ताना देना कभी-कभी बहाना देना, यू मेरे दिल का उन पर मरना और हंस के उनका ना कहना! फिर भी मेरा उन पर मरना खोने के डर से दोस्ती करना, ना उनको कोई फर्क पड़ना ना दिल का मेरे दर्द पढ़ना! मेरे जज्बातों को हल्के में लेना जो सताती है मुझे यादों में, वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रात में । रोज रात संगीत सुनना उनके लिए मेरा गीत कहना, ओ बिन बोले हर चीज कहना मेरा उनसे प्रीत करना! हमेशा मेरा जिद करना उनसे मेरा मीत करना, ना हम समझ सके उनके जज्बातों को ! वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रातों में। यूं पास आकर दूर होना दूर जाकर पास आना, कभी मिलने की चाह ना करना मन मर्जी से बातें करना! फिर मेरा उनसे मिलने जाना जल्दी में मेरा वापस आना, ना खुलकर उनसे बातें करना ना आंखों से आंखों का मिलना! जो जलाती है मुझे रातों में, वो दिन भी क्या दिन थे जब हम सोते नहीं थे रात में। ©Raj

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