मेरी नजरें उसी पर थी बस
मानो उम्मीदों का वो कोई जरिया थी
रोशनी की अलसुबह में हर रोज
नींद का दायरा वो खतम करती थी
सुहानी और ठंडी हवाओं के बीच
सुकून की ताजगी वो दिया करती थी
वो खिड़की
वही खिड़की जो गवाह थी उन बातों की
वही खिड़की जो बंद दिवारी में रहकर
हजारों छिपी बातों को दबाये रहती थी
वो खिडकी
जो मेरे घर की रौनक बढाती थी
हां,वही खिड़की
वही खिड़की जो दिवारों में रहकर
और धूप के अनगिनत थपेड़े सहकर
मेरे तन पर शीतल हवा का स्पर्श कराती थी
रात के पहर में अक्सर
उसी खिड़की के भीतर से
मैं उस चांद को देखा करता था
उसी खिड़की पे बैठे हुए कभी
अपने सपनों की नई दुनिया पिरोया करता था
वो खिड़की,काफी थी
जिंदगी के अनेक रंगों को दिखाने के लिये
वो खिड़की,काफी थी
दुनिया के कुछ चेहरों को जानने के लिये
और
वो खिड़की,काफी थी
मेरे उन सपनों को परवान चढाने के लिये
वक्त के पहिये के सहारे
दुनिया चाहे घूम ली हो मैने
लेकिन
लेकिन इस खिड़की से ये दुनिया
बहुत छोटी नजर आती है मुझे
जब भी नजरें पड़ती थी उस पे
जैसे लगता है उम्मीद का एक जरिया मिल गया हो
जैसे मुझे जिंदगी की कोई नई सीख दे गया हो
वो खिड़की सिर्फ खिड़की नहीं थी
वो खिड़की
मेरी जिंदगी का एक रास्ता थी वो
वो खिड़की
मेरी सोयी उम्मीदों को जगाने का जरिया थी
वो खिड़की
मेरे सपनों को हकीकत में बदलने का पैगाम थी
©Gaurav Soni
#khidki