White *पेपर लीक* 🖊️..... हद से ज्यादा जब भी सता | हिंदी कविता

"White *पेपर लीक* 🖊️..... हद से ज्यादा जब भी सताता है कोई आदमी तब जाकर आवाज़ उठाता है कोई आदमी बार -बार पेपर लीक बार -बार ये भ्रष्ट्राचार कभी सोचा है कितना रुलाता है कोई आदमी कोई बगावत कहे या सरफिरा बदमाशी इसे कहां शौक से आंख दिखाता है कोई आदमी किस पे भरोसा हो किस पर एतबार किया जाए हर जगह ईमान बेचकर कमाता है कोई आदमी थक गई जिंदगी जिसके सारे दाव आजमा के खुदखुशी को कदम फिर बढ़ाता है कोई आदमी आग की जलन का खौफ कब तक रखें कोई मजबूर होकर मशाल जलाता है कोई आदमी गांव - गांव... शहर- शहर गोलबंद होकर गीत इन्कलाब के गुनगुनाता है कोई आदमी कोई मन के कोने में राम कोई मुंह के सामने जितनी कुव्वत उतना चिल्लाता है कोई आदमी इंसाफ़ की तराजू में सदियों से ताकत है भारी इसलिए भेड़ बकरियों को मार खाता है आदमी राणा रामशंकर सिंह बंजारा कवि 🖊️"

 White *पेपर लीक*  🖊️.....

हद से ज्यादा जब भी  सताता है कोई आदमी 
तब जाकर  आवाज़ उठाता है कोई आदमी 

बार -बार पेपर लीक बार -बार ये भ्रष्ट्राचार 
कभी सोचा है कितना रुलाता है कोई आदमी 

कोई बगावत कहे या सरफिरा बदमाशी  इसे 
कहां शौक से आंख दिखाता है कोई आदमी 

किस पे भरोसा हो किस पर एतबार किया जाए 
हर जगह ईमान बेचकर कमाता है कोई आदमी 

थक गई जिंदगी जिसके सारे दाव आजमा के 
खुदखुशी को कदम फिर  बढ़ाता है कोई आदमी 

आग की जलन का खौफ कब तक रखें कोई 
मजबूर होकर मशाल जलाता है कोई आदमी 

गांव - गांव... शहर- शहर गोलबंद होकर 
गीत इन्कलाब के गुनगुनाता है कोई आदमी 

कोई मन के कोने में राम कोई मुंह के सामने 
जितनी कुव्वत उतना चिल्लाता है कोई आदमी

इंसाफ़ की तराजू में सदियों से ताकत है भारी 
इसलिए भेड़ बकरियों को मार खाता है आदमी

राणा रामशंकर सिंह बंजारा कवि  🖊️

White *पेपर लीक* 🖊️..... हद से ज्यादा जब भी सताता है कोई आदमी तब जाकर आवाज़ उठाता है कोई आदमी बार -बार पेपर लीक बार -बार ये भ्रष्ट्राचार कभी सोचा है कितना रुलाता है कोई आदमी कोई बगावत कहे या सरफिरा बदमाशी इसे कहां शौक से आंख दिखाता है कोई आदमी किस पे भरोसा हो किस पर एतबार किया जाए हर जगह ईमान बेचकर कमाता है कोई आदमी थक गई जिंदगी जिसके सारे दाव आजमा के खुदखुशी को कदम फिर बढ़ाता है कोई आदमी आग की जलन का खौफ कब तक रखें कोई मजबूर होकर मशाल जलाता है कोई आदमी गांव - गांव... शहर- शहर गोलबंद होकर गीत इन्कलाब के गुनगुनाता है कोई आदमी कोई मन के कोने में राम कोई मुंह के सामने जितनी कुव्वत उतना चिल्लाता है कोई आदमी इंसाफ़ की तराजू में सदियों से ताकत है भारी इसलिए भेड़ बकरियों को मार खाता है आदमी राणा रामशंकर सिंह बंजारा कवि 🖊️

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