चलता ही रहा मुसाफ़िर रात- दिन
बदलता ही रहा ये समाँ रात- दिन
खामोशी ने भी अब तोड़ दी बेड़ियाँ,
ख्वाहिशों में उड़ रहा मुसाफ़िर रात- दिन
क्यूँ राहों में अकेले सफर था तुम्हारा,
कोई मिला है तो थाम हाथ रात- दिन
बदले किस्मत या जिंदगी अगर कोई तेरी
तो निभा लेना तू भी साथ रात- दिन
घुल गयी धुन्ध अब इस कड़ी धूप में ,
और पहचान आए पूरे रात- दिन
अब ना बैचेनी है ना ही कोई शिकन,
उड़ता ही फिरे अब तो मन रात-दिन।
©Mawari Nimay
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