मेरे सवालो का तू हल भी थी
वो तू आज भी थी कल भी थी
अधुरी दासताने गाने वालो
एक कहानी मुकम्मल भी थी
मुझसे प्यार तक तो ठीक था
वो मेरे पिच्छे पागल भी थी
उसके पैर भी सुने थे और
मेरे हाथ मे पायल भी थी
रोज़ मिलते नए गमो के बिच
एक टिस मुसलसल भी थी
जिस पल तेरी ज़रुरत न थी
मुझे ज़रुरत तेरी उस पल भी थी
वो रायगां हू के जिसे दुनिया की
हर एक शय कभी हासील भी थी
©Aman Mishra Anant