सहेज के रखा है कुछ ख़्वाबों और कुछ उपलब्धियों को
अलमारी के एक कोने में। कैद सी महसूस होती होगी न
उन्हें!?
मगर कोई और विकल्प नहीं होता कुछ लोगों के पास!
कुछ ख़्वाब हासिल कुछ लाहासिल हैं।
और इन सबके साथ सहेजे हैं कुछ राज़ मैंने।
हर वक़्त हर पल कुछ न कुछ जाहिर किया जाए ये जरूरी तो नहीं।
कुछ चीजें,
कुछ बातें, कुछ ख़्वाब,
कुछ ख्याल,
सिर्फ जीने के लिए होते हैं।
जिन्हें बांटा नहीं जा सकता!! चाहकर भी नहीं!
या शायद आज बांटा नहीं जा सकता।
हाँ! क्योंकि कुछ बातें साझा होने के लिए वक़्त.... continue
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©Divya Joshi
सहेज के रखा है कुछ ख़्वाबों और कुछ उपलब्धियों को अलमारी के एक कोने में। कैद सी महसूस होती होगी न उन्हें!?
मगर कोई और विकल्प नहीं होता कुछ लोगों के पास!
कुछ ख़्वाब हासिल कुछ लाहासिल हैं। और इन सबके साथ सहेजे हैं कुछ राज़ मैंने। हर वक़्त हर पल कुछ न कुछ जाहिर किया जाए ये जरूरी तो नहीं। कुछ चीजें, कुछ बातें, कुछ ख़्वाब, कुछ ख्याल, सिर्फ जीने के लिए होते हैं। जिन्हें बांटा नहीं जा सकता!! चाहकर भी नहीं!
या शायद आज बांटा नहीं जा सकता।
हाँ! क्योंकि कुछ बातें साझा होने के लिए वक़्त मांगती हैं। ये भी मांग रही हैं। मैं वक़्त दे रही हूँ। ये पल पल इंतज़ार झोली में डाल रही हैं।
कुछ विरक्तियों ने मन को रिक्त रहने नहीं दिया और बची जो थोड़ी बहुत जगह है, उसमें मैं पल पल वो इंतज़ार सहेज रही हूँ, जिसने मेरे मन से लेकर पूरा घर तक घेर लिया है। हर दीवार पर इंतज़ार लिखा है!! जिसे मैं पढ़ रही हूँ।
सो तुम्हें लगाने की जगह दीवार पर नहीं है।