जुबा क्या खुली....
लफ़्ज़ तितर बितर होने लगे
मानो उन्हें पंख जो मिल गये
कोई राह ना कोई वक़्त देख रहे हैं
बस आज़ाद एक तख्त देख रहे हैं
अजीब रंगों का शहर हैं
ये तो बस अब खुली लगाम का कहर हैं
मानो हर रोज की कहानी को आज सुना ही डालेंगे
जेसे लगा था कबसे जुबा पर ताला
आज लगी चाबी तो सारे राज़ बता ही डालेंगे
कब से ठहरे किसी रास्ते पर थे
आज मिली आज़ादी तो अपने रंग दिखा ही डालेंगे
अब तो जुबा क्या खुली
बस सारे राज़ बता ही डालेंगे.
अब तो जुबा क्या खुली
बस सारे राज़ बता ही डालेंगे....#DP