हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। हे वीणा व | हिंदी कविता

"हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। हे वीणा वादिनी मां, वाणी में ओज भर दो। ये कलम चले जब भी, हो सत्य साथ मेरे। जन जन मन की पीड़ा, हो बयां हाथ मेरे। हे करुणामयी माता शब्दों में प्रीत भर दो। हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। गजलों में हो प्रेम प्रभा, गीतों में भाव बहे। ना कंठ रहे जब ये, शब्दों का प्रभाव रहे। हे वेद धारिणी मां, लेख प्रबल कर दो। हे ज्ञान दायिनी मां, अज्ञान तिमिर हर लो। तेरी कृपा के बिना, हम ज्ञान कहां पाएं। मन भटक रहा जग में, आध्यात्म कहां पाएं। हे हंस वाहिनी मां, हृदय पावन कर दो। हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। ©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि""

 हे ज्ञान दायिनी मां 
अज्ञान तिमिर हर लो।
हे वीणा वादिनी मां, 
वाणी में ओज भर दो।

ये कलम चले जब भी,
हो सत्य साथ मेरे।
जन जन मन की पीड़ा,
हो बयां हाथ मेरे।
हे करुणामयी माता
शब्दों में प्रीत भर दो।
हे ज्ञान दायिनी मां
अज्ञान तिमिर हर लो।

गजलों में हो प्रेम प्रभा,
गीतों में भाव बहे।
ना कंठ रहे जब ये,
शब्दों का प्रभाव रहे।
हे वेद धारिणी मां,
लेख प्रबल कर दो।
हे ज्ञान दायिनी मां, 
अज्ञान तिमिर हर लो।

तेरी कृपा के बिना,
हम ज्ञान कहां पाएं।
मन भटक रहा जग में,
आध्यात्म कहां पाएं।
हे हंस वाहिनी मां,
हृदय पावन कर दो।
हे ज्ञान दायिनी मां 
अज्ञान तिमिर हर लो।

©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। हे वीणा वादिनी मां, वाणी में ओज भर दो। ये कलम चले जब भी, हो सत्य साथ मेरे। जन जन मन की पीड़ा, हो बयां हाथ मेरे। हे करुणामयी माता शब्दों में प्रीत भर दो। हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। गजलों में हो प्रेम प्रभा, गीतों में भाव बहे। ना कंठ रहे जब ये, शब्दों का प्रभाव रहे। हे वेद धारिणी मां, लेख प्रबल कर दो। हे ज्ञान दायिनी मां, अज्ञान तिमिर हर लो। तेरी कृपा के बिना, हम ज्ञान कहां पाएं। मन भटक रहा जग में, आध्यात्म कहां पाएं। हे हंस वाहिनी मां, हृदय पावन कर दो। हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। ©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

#बसंतपंचमी

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