रिंकी कमल रघुवंशी

रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

लेखन जिंदगी है कलम वजूद है मेरा।

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#कविता #love_shayari  White WHISPERS OF THE ARTISTIC SOUL OF MINE FROM A GRAVE 

Dawn knocks at the door  of my grave, 
And I see a sunbeam penetrate my skin 
And bring back to life the soul of an artiste dead
Inside me, 
Alive, once again
to another day 
I breathe in pain
And exhale art
With a paintbrush picked out of my nerves, 
I paint misery on the canvas
Of my skin with myriad colors of my blood 
The ink of my vein summons 
the cold-blooded universe, 
And turns it cordial 
With its warmath
And as footsteps of dusk approach, 
I dig a grave while dancing on my feet
To bury myself there with and unheard melody 
From my grave, moonlight emerges  
Only to illuminate the world after my demise , 
But you see, 
My addiction to art never let's me die. 
After my death 
My art makes me alive

ayushman singh

©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

#love_shayari

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तन के रोग सारे, मन के रोष सारे। जो हों अवरोष सारे, जगत के दोष सारे। दहन हों होलिका में सब। गहरी टीस हो मनकी,बहती आंख के गम भी। दुखद दुविधाएं किस्मत की, गहन अज्ञान के तम भी। दहन हों होलिका में सब। सकल संसार के संकट,बहती खौफ की आहट। मिटती प्रेम की रौनक, दिलों की सारी कड़वाहट। दहन हों होलिका में सब। अपनों से गिले शिकवे, पल पल टूटते रिश्ते। मिथ्या अहम ये मन के, द्वेष आपस में जो पलते। दहन हों होलिका में सब। ©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

#कविता #holikadahan  तन के रोग सारे, मन के रोष सारे।
जो हों अवरोष सारे, जगत के दोष सारे।
दहन हों होलिका में सब।
गहरी टीस हो मनकी,बहती आंख के गम भी।
दुखद दुविधाएं किस्मत की, गहन अज्ञान के तम भी।
दहन हों होलिका में सब।
सकल संसार के संकट,बहती खौफ की आहट।
मिटती प्रेम की रौनक, दिलों की सारी कड़वाहट।
दहन हों होलिका में सब।
अपनों से गिले शिकवे, पल पल टूटते रिश्ते।
मिथ्या अहम ये मन के, द्वेष आपस में जो पलते।
दहन हों होलिका में सब।

©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

#holikadahan

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बांध कफ़न खुद ही वो सर से निकल गए।। जवान मेरे देश के घर से निकल गए।। गर्मी की हो तपन या हों बर्फीली हवाएं। तूफां भी देख हौंसले डर के निकल गए।। जज्बा है देश प्रेम का मरता नहीं कभी। अमर हुए वो वीर जो मर के निकल गए।। चलाते रहे गोलियां रुकती रही सांसे। अदा वो फ़र्ज़ माटी के करके निकल गए।। तूफान थे इरादों में बारूद था सीना। मुठ्ठी में आंधियां लिए लड़ के निकल गए।। आंचल से दूध बह गया राखी तड़फ गई। सीना पिता का गर्व से भर के निकल गए।। वह राह तकती रह गईं बनने को दुल्हनियां। वतन की मांग खूं से वो भर के निकल गए।। महबूब वतन सुरभि उनकी सांसों में वफा। दिलों में मुहब्बत को वो धर के निकल गए।। ©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

#पुलवामा #कविता #sainik  बांध कफ़न खुद ही वो सर से निकल गए।।
जवान  मेरे  देश  के   घर  से  निकल गए।।

गर्मी की  हो तपन  या  हों  बर्फीली  हवाएं।
तूफां भी  देख  हौंसले  डर के निकल गए।।

जज्बा  है  देश  प्रेम  का  मरता नहीं कभी।
अमर  हुए वो वीर जो  मर के निकल गए।।

चलाते   रहे   गोलियां  रुकती  रही   सांसे।
अदा वो  फ़र्ज़ माटी के करके निकल गए।।

तूफान  थे  इरादों  में   बारूद  था    सीना।
मुठ्ठी में आंधियां लिए लड़ के निकल गए।।

आंचल से  दूध  बह गया राखी तड़फ गई।
सीना पिता का गर्व से भर के निकल गए।।

वह राह तकती रह गईं बनने को  दुल्हनियां।
वतन की मांग खूं से वो भर के निकल गए।।

महबूब  वतन सुरभि  उनकी सांसों में वफा।
दिलों में मुहब्बत को  वो धर के निकल गए।।

©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। हे वीणा वादिनी मां, वाणी में ओज भर दो। ये कलम चले जब भी, हो सत्य साथ मेरे। जन जन मन की पीड़ा, हो बयां हाथ मेरे। हे करुणामयी माता शब्दों में प्रीत भर दो। हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। गजलों में हो प्रेम प्रभा, गीतों में भाव बहे। ना कंठ रहे जब ये, शब्दों का प्रभाव रहे। हे वेद धारिणी मां, लेख प्रबल कर दो। हे ज्ञान दायिनी मां, अज्ञान तिमिर हर लो। तेरी कृपा के बिना, हम ज्ञान कहां पाएं। मन भटक रहा जग में, आध्यात्म कहां पाएं। हे हंस वाहिनी मां, हृदय पावन कर दो। हे ज्ञान दायिनी मां अज्ञान तिमिर हर लो। ©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

#बसंतपंचमी #कविता  हे ज्ञान दायिनी मां 
अज्ञान तिमिर हर लो।
हे वीणा वादिनी मां, 
वाणी में ओज भर दो।

ये कलम चले जब भी,
हो सत्य साथ मेरे।
जन जन मन की पीड़ा,
हो बयां हाथ मेरे।
हे करुणामयी माता
शब्दों में प्रीत भर दो।
हे ज्ञान दायिनी मां
अज्ञान तिमिर हर लो।

गजलों में हो प्रेम प्रभा,
गीतों में भाव बहे।
ना कंठ रहे जब ये,
शब्दों का प्रभाव रहे।
हे वेद धारिणी मां,
लेख प्रबल कर दो।
हे ज्ञान दायिनी मां, 
अज्ञान तिमिर हर लो।

तेरी कृपा के बिना,
हम ज्ञान कहां पाएं।
मन भटक रहा जग में,
आध्यात्म कहां पाएं।
हे हंस वाहिनी मां,
हृदय पावन कर दो।
हे ज्ञान दायिनी मां 
अज्ञान तिमिर हर लो।

©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

जज्बात की दबती हुई आवाज सा क्यूं है।। हर शख्स ही मिला यहां नाराज़ सा क्यूं है।। रिस रिस के सारे आंख से यूं ख्वाब बह गए। सदियों से दिल में दर्द का आघात सा क्यूं है।। बातें भी मुहाबत की अब गुनाह हो गईं। दिलों में नफरतों भरा आगार सा क्यूं है।। है प्यार की तलाश में नफरत को पालकर। इंसान बन गया उलझते राज सा क्यूं है। है बेवफा ये जिन्दगी इक पल नहीं यकीं। लेके गुनाहों का चला ये भार सा क्यूं है।। बांटे हैं सुरभि अपने अपने राग में खुदा। दिल पाक इवादात में भी नापाक सा क्यूं है।। ©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

#कविता #गजल #wait  जज्बात की दबती हुई आवाज सा क्यूं है।।
हर शख्स ही मिला यहां नाराज़ सा क्यूं है।।

रिस रिस के सारे आंख से यूं ख्वाब बह गए।
सदियों से दिल में दर्द का आघात सा क्यूं है।।

बातें भी मुहाबत की अब गुनाह हो गईं।
दिलों में नफरतों भरा आगार सा क्यूं है।।

है प्यार की तलाश में नफरत को पालकर।
इंसान बन गया उलझते राज सा क्यूं है।

है बेवफा ये जिन्दगी इक पल नहीं यकीं।
लेके गुनाहों का चला ये भार सा क्यूं है।।

बांटे हैं सुरभि अपने अपने राग में खुदा।
दिल पाक इवादात में भी नापाक सा क्यूं है।।

©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

A Mother's Prayer शंकाएं मिटाती है नजर उतारकर, शुद्ध आहार से संतुष्ट नहीं होती, बूटियां डालकर काढ़ा भी पिलाती है डॉक्टर को दिखाकर निश्चिंत नहीं होती। वो मॉम्म, मम्मा मदर, सब बनती है मगर मां, मां ही रहती है आधुनिक नहीं होती ©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

#कविता #Mother  A Mother's Prayer   

शंकाएं मिटाती है
नजर उतारकर,
शुद्ध आहार से संतुष्ट नहीं होती,
बूटियां डालकर
काढ़ा भी पिलाती है
डॉक्टर को दिखाकर निश्चिंत नहीं होती।
वो मॉम्म, मम्मा मदर,
सब बनती है मगर
मां, मां ही रहती है आधुनिक नहीं होती

©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

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