एक माँ का किरदार समाज का दिया हुआ और फितरत का वसूल | हिंदी विचार

"एक माँ का किरदार समाज का दिया हुआ और फितरत का वसूल है इस मे एहसान जैसा कुछ नहीं है माँ बच्चों का बोझ उठाती है एक वजूद का दुनिया में आना उन ही के वचन का कारण है जो खुद ना खा सकता ना पी सकता इस लिए चेतना आने तक सारी जिम्मेदारी उन का पहला फ़र्ज़ है अगर माँ बाप ना चाहते तो एक इंसान का आना मुमकिन न था और माँ बाप आजाद थे इस लिए जो अमल हुआ है उसके जिम्मेदार आप हैं ©Ashab Khan"

 एक माँ का किरदार समाज का दिया हुआ और फितरत का वसूल है इस मे एहसान जैसा कुछ नहीं है माँ बच्चों का बोझ उठाती है एक वजूद का दुनिया में आना उन ही के वचन का कारण है जो खुद ना खा सकता ना पी सकता इस लिए चेतना आने तक सारी जिम्मेदारी उन का पहला फ़र्ज़ है अगर माँ बाप ना चाहते तो एक इंसान का आना मुमकिन न था और माँ बाप आजाद थे इस लिए जो अमल हुआ है उसके जिम्मेदार आप हैं

©Ashab Khan

एक माँ का किरदार समाज का दिया हुआ और फितरत का वसूल है इस मे एहसान जैसा कुछ नहीं है माँ बच्चों का बोझ उठाती है एक वजूद का दुनिया में आना उन ही के वचन का कारण है जो खुद ना खा सकता ना पी सकता इस लिए चेतना आने तक सारी जिम्मेदारी उन का पहला फ़र्ज़ है अगर माँ बाप ना चाहते तो एक इंसान का आना मुमकिन न था और माँ बाप आजाद थे इस लिए जो अमल हुआ है उसके जिम्मेदार आप हैं ©Ashab Khan

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