लगता नहीं है मन मेरा इस बेजान हुए जहां में
उठो लो ना अब मुझे इस खंडहर हुए मकान से।
ना यहां रुह को सकुन है ना दिल में आराम है,
धर्म और जातियों में बटा संसार है,
मैं बड़ा मै बड़ा करके हो रहा नरसंहार है।
लगता नहीं मन मेंरा इस जलते हुए मशान में,
उठा लो ना अब मुझे इस खंडहर हुऐ मकान से।
मुहब्बत की बात करते हैं,
और परमाणु हथियारों निर्माण करते हैं।
एक दूसरे को सिने से लगाकर पीठ पर वार करते हैं।
लगता नहीं मन मेरा गिर रहे मानव प्रवेश में,
उठा लो ना अब मुझे इस खंडहर हुए मकान से।
जगंलौ की वो दुनिया तबाह कर दी हमने अपने अहम
धरती को जागिर बना लिया अपनी पता नहीं किस वहम में,
स्वर्ग से नरक बन गया जहां मानव के कहर में।
लगता नहीं मन मेंरा इस तपते हुए रेगिस्तान में,
उठा लो ना अब मुझे ईस खंडहर हुए मकान से।
©Shiva hooda
खंडहर