कुछ अनजान रिश्ते,
यूँ ही जुड़ जाती हैं
हम उन्हें
टूटकर निभाते हैंl
कभी हँसते_हँसाते हैं
कभी वेवजह तड़पाते हैं,
हर हाल एक_दूसरे को
बतलाते हैं।
हर खुशी_गम में
एक दूसरे को मिलाते हैं,
रिश्ते की कोई
ओर_छोड़ नही
फिर भी निभाते हैंl
इतना होते हुए भी
ज़नाब…!
ये रिश्ते अनजान कहलाते हैं।
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