ए मेरे वतन ,तेरे खातिर, मैं दुनिया छोड़ आया हूं। | हिंदी कविता

"ए मेरे वतन ,तेरे खातिर, मैं दुनिया छोड़ आया हूं। मेरे महबूब की, हर पल की यादों को ,महकता छोड़ आया हूं। मैं अपनी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूं। मैं अपनी मां की बाहों को, तड़पता छोड़ आया हूं। जहां दिन-रात खेला था,सालों साल खेला था। मैं उस गांव की मिट्टी को,सूना छोड़ आया हूं। महकती हर पल की यादें हैं, तड़पता जान है मेरा,, मगर महबूब से पहले, ये हिंदुस्तान है मेरा। Anubhav Chaudhary"

 ए मेरे वतन ,तेरे खातिर, मैं दुनिया छोड़ आया हूं।
 मेरे महबूब की, हर पल की यादों को ,महकता छोड़ आया हूं।
मैं अपनी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूं। 
मैं अपनी मां की बाहों को, तड़पता छोड़ आया हूं।
जहां दिन-रात खेला था,सालों साल खेला था।
मैं उस गांव की मिट्टी को,सूना छोड़ आया हूं।
महकती हर पल की यादें हैं, तड़पता जान है मेरा,,
मगर महबूब से पहले, ये हिंदुस्तान है मेरा।
Anubhav Chaudhary

ए मेरे वतन ,तेरे खातिर, मैं दुनिया छोड़ आया हूं। मेरे महबूब की, हर पल की यादों को ,महकता छोड़ आया हूं। मैं अपनी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूं। मैं अपनी मां की बाहों को, तड़पता छोड़ आया हूं। जहां दिन-रात खेला था,सालों साल खेला था। मैं उस गांव की मिट्टी को,सूना छोड़ आया हूं। महकती हर पल की यादें हैं, तड़पता जान है मेरा,, मगर महबूब से पहले, ये हिंदुस्तान है मेरा। Anubhav Chaudhary

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