कुछ कमी तुझमें कुछ कमी मुझमें भी फिर कैसा इतराना? | हिंदी विचार

"कुछ कमी तुझमें कुछ कमी मुझमें भी फिर कैसा इतराना? कुछ करो तुम कुछ करें हम भी बस मिल कर हाथ बढाना। परोपकार ही है सेवा बात सभी है जाने। पर सच्ची सीधी बातें कहाँ कोई हैं माने। करके थोड़ा दान कभी नहीं इतराना। बहते आंखों के आसूं पोंछ कभी तुम देखो। मन की पीडा लोगों के मन झांक कभी तुम देखो ठहर कभी दो पल संग उनके भी बीताना। ©Archana sharma"

 कुछ कमी तुझमें
कुछ कमी मुझमें भी
फिर कैसा इतराना?
कुछ करो तुम
 कुछ करें हम भी
बस मिल कर
 हाथ बढाना।

परोपकार ही है सेवा
बात सभी है जाने।
पर सच्ची सीधी बातें 
कहाँ कोई हैं माने।
 करके थोड़ा दान
 कभी नहीं इतराना।

बहते आंखों के आसूं 
पोंछ कभी तुम देखो।
मन की पीडा लोगों के
मन झांक कभी तुम देखो
ठहर कभी दो पल
संग उनके भी बीताना।

©Archana sharma

कुछ कमी तुझमें कुछ कमी मुझमें भी फिर कैसा इतराना? कुछ करो तुम कुछ करें हम भी बस मिल कर हाथ बढाना। परोपकार ही है सेवा बात सभी है जाने। पर सच्ची सीधी बातें कहाँ कोई हैं माने। करके थोड़ा दान कभी नहीं इतराना। बहते आंखों के आसूं पोंछ कभी तुम देखो। मन की पीडा लोगों के मन झांक कभी तुम देखो ठहर कभी दो पल संग उनके भी बीताना। ©Archana sharma

#kinaara

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