मुट्ठी में बंद रेत से फिसलते चले गए हम मोह के धागो
"मुट्ठी में बंद रेत से फिसलते चले गए
हम मोह के धागों में बंधते चले गए
जाने कशिश है कैसी तेरे इश्क़ में मेरे हमदम
हम बर्फ की सिल्ली से पिघलते चले गए
खुशबू सिंह"
मुट्ठी में बंद रेत से फिसलते चले गए
हम मोह के धागों में बंधते चले गए
जाने कशिश है कैसी तेरे इश्क़ में मेरे हमदम
हम बर्फ की सिल्ली से पिघलते चले गए
खुशबू सिंह