मुट्ठी में बंद रेत से फिसलते चले गए
हम मोह के धागों में बंधते चले गए
जाने कशिश है कैसी तेरे इश्क़ में मेरे हमदम
हम बर्फ की सिल्ली से पिघलते चले गए
खुशबू सिंह
एक अजनबी से मेरा पता ले रहा कोई
पहले था सगा आज दगा दे रहा कोई
तेरे इंतजार में मैंने सदियां गुजर दीं
अपनी ये ज़िन्दगी भी तुझपे निसार दी
माँगा था मैने लाल रंग
कफ़न दे गया कोई
खुशबू सिंह
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