क्षितज तक जो फैले थे नज़ारे याद करता हूं मै मझदारो
"क्षितज तक जो फैले थे नज़ारे याद करता हूं
मै मझदारो कि कस्ती हूं किनरे याद करता हूं
बहोत तन कर खड़ा सा पेड़ था मै उन तूफानों में
अब हवाएं भी जों चलती है सहारे याद करता हूं
Prabhat Rai"
क्षितज तक जो फैले थे नज़ारे याद करता हूं
मै मझदारो कि कस्ती हूं किनरे याद करता हूं
बहोत तन कर खड़ा सा पेड़ था मै उन तूफानों में
अब हवाएं भी जों चलती है सहारे याद करता हूं
Prabhat Rai