वो जो कभी इश्क़ फ़रमाते थे
आज उसी इश्क़ से रूठे बैठे हैं,
जिसे चाहा वो मिला नहीं
तो इश्क़ को क़ोस कर बैठे हैं,
ग़लती उनकी भी नहीं
बस इश्क़ के छोटे से
कड़वे पहलू क़ो दिल में दबाए बैठे हैं,
विडम्बना तो देखिए जनाब
जिसे दिल लगाकर चाहा वो मिला नहीं,
कभी दिल की बात ज़ुबान से अर्ज़ करना चाही,
तो ये ज़ुबान चुपी साध गयी,
इन आँखों ने बयान करना तो चाहा पर वो जनाब
समझ नहीं पाए,
और जिसने हमको चाहा
हमें उसकी क़दर का अहसास ही नहीं हुआ,
ग़लती अपनी और दूसरों क़ो कोसते रेहते हैं,
वो जो कभी इश्क़ फ़रमाते थे,
आज उसी इश्क़ से रूठे बैठे हैं!
©Mohit Kumar
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