मेरे मन की व्यथा जानता मेरा हृदय
खुद को खुद ही संभालता मेरा मन
मुझमें मेरा श्रृंगार करता मन
धैर्य , सहनशीलता , मनोबल, हिम्मत
मेरे मौन रहने की चेष्टा को नहीं
समझ पाया है ये समाज
जिसे वो कमजोर ,लाचार शब्द दे रहा
वो समाज इस बात से अज्ञात है
अरसो से उसके अस्तित्व को
कायम रखती
अपार शक्ति का रूपक
वो नारी है .
©Bhawana Pandey
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