शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब
अब तो पोलिस से डर लगता है
अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है
चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है
अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से
कोई पत्थर आ जाए पैरों में
तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है
जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है
उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब
खाई है रिश्वत बे हिसाब
और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब
यही वक्त था तुम्हारे पास
अपने किरदार को बदल देते साहब
इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे
ये मुल्क को बता देते साहब
पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा
ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब
हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा
हद कर दी तुमने तो देखो किसी को जान से ही धोडाला साहब
ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब
पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब
अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है
मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब
अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है
जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब
ऐसी पुलिस पे शर्म आती है
जो संविधान की बात ना करती जो संविधान से कामना करती
उस पुलिस पे शर्म आती है उस पुलिस पे शर्म आती है।
( खान रिज़वान )
#पोलीस पर शर्म आती है