Mairi AawaZ Suno

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मेरी मां ने मेरी तमन्ना की मेरे आने से पहले मुझको कितना संभाला मेरे आने से पहले दोनों जहां की मोहब्बत लुटाई मेरे चाहने से पहले हर दुआ में दुआ मेरे लिए मांगी मेरे मांगने से पहले मेरी हर तमन्ना की पूरी मेरे चाहने से पहले मुझको सूखे में सुला के गिले में सोती थी अपने आंचल की ठंडी हवा देती थी मेरी छोटी सी हरकत पर वो जाग जाती थी मुझको थपकी देती वो खुद जागा करती थी कितने सपने सजाए मेरे सपनों के लिए कितने सजदे किए मेरी सलामती के लिए उसने कोई हिसाब ना रखा अपनी दुआओं का वह लुटाती रही बेहिसाब और मैंने हिसाब रखा हर किस्त का अपनी किताब में (खान रिज़वान)

#मेरी  मेरी मां ने मेरी तमन्ना की मेरे आने से पहले
मुझको कितना संभाला मेरे आने से पहले

दोनों जहां की मोहब्बत लुटाई मेरे चाहने से पहले
हर दुआ में दुआ मेरे लिए मांगी मेरे मांगने से पहले
मेरी हर तमन्ना की पूरी मेरे चाहने से पहले

मुझको सूखे में सुला के गिले में सोती थी
अपने आंचल की ठंडी हवा देती थी

मेरी छोटी सी हरकत पर वो जाग जाती थी
मुझको थपकी देती वो खुद जागा करती थी

कितने सपने सजाए मेरे सपनों के लिए
कितने सजदे किए मेरी सलामती के लिए

उसने कोई हिसाब ना रखा अपनी दुआओं का
वह लुटाती रही बेहिसाब

और मैंने हिसाब रखा हर किस्त का अपनी किताब में

(खान रिज़वान)

#मेरी मां

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मेरी मां मेरी मां ने मेरी तमन्ना की मेरे आने से पहले मुझको कितना संभाला मेरे आने से पहले दोनों जहां की मोहब्बत लुटाई मेरे चाहने से पहले हर दुआ में दुआ मेरे लिए मांगी मेरे मांगने से पहले मेरी हर तमन्ना की पूरी मेरे चाहने से पहले मुझको सूखे में सुला के गिले में सोती थी अपने आंचल की ठंडी हवा देती थी मेरी छोटी सी हरकत पर वो जाग जाती थी मुझको थपकी देती वो खुद जागा करती थी कितने सपने सजाए मेरे सपनों के लिए कितने सजदे किए मेरी सलामती के लिए उसने कोई हिसाब ना रखा अपनी दुआओं का वह लुटाती रही बेहिसाब और मैंने हिसाब रखा हर किस्त का अपनी किताब में (खान रिज़वान)

#शायरी  मेरी मां
मेरी मां ने मेरी तमन्ना की मेरे आने से पहले
मुझको कितना संभाला मेरे आने से पहले

दोनों जहां की मोहब्बत लुटाई मेरे चाहने से पहले
हर दुआ में दुआ मेरे लिए मांगी मेरे मांगने से पहले
मेरी हर तमन्ना की पूरी मेरे चाहने से पहले

मुझको सूखे में सुला के गिले में सोती थी
अपने आंचल की ठंडी हवा देती थी

मेरी छोटी सी हरकत पर वो जाग जाती थी
मुझको थपकी देती वो खुद जागा करती थी

कितने सपने सजाए मेरे सपनों के लिए
कितने सजदे किए मेरी सलामती के लिए

उसने कोई हिसाब ना रखा अपनी दुआओं का
वह लुटाती रही बेहिसाब

और मैंने हिसाब रखा हर किस्त का अपनी किताब में

(खान रिज़वान)

मेरी मां

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न जाने मेरे ज़हन में ये क्या चल रहा था अदा कर रहा था नमाज़ और ख्याल तेरा चल रहा था न जाने मैं क्या कुफ्र कर रहा था शायद गुना है अज़िम कर रहा था था सजदे में सर मेरा राहे ख़ुदा के और याद तुझको कर रहा था (खान रिज़वान)

#गुनाह  न जाने मेरे ज़हन में ये क्या चल रहा था
अदा कर रहा था नमाज़ और ख्याल 
तेरा चल रहा था

न जाने मैं क्या कुफ्र कर रहा था
शायद गुना है अज़िम कर रहा था

था सजदे में सर मेरा राहे ख़ुदा के
और याद तुझको कर रहा था

(खान रिज़वान)

शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब अब तो पोलिस से डर लगता है अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से कोई पत्थर आ जाए पैरों में तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब खाई है रिश्वत बे हिसाब और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब यही वक्त था तुम्हारे पास अपने किरदार को बदल देते साहब इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे ये मुल्क को बता देते साहब पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा किसी की जान की परवाह ना की किसी को जान से ही मारडाला साहब ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब ऐसी पुलिस पे शर्म आती है जो संविधान की बात ना करती जो संविधान से कामना करती उस पुलिस पे शर्म आती है उस पुलिस पे शर्म आती है। ( खान रिज़वान )

#पुलिस  शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब 
अब तो पोलिस से डर लगता है

अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है
चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है

अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से
कोई पत्थर आ जाए पैरों में
तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है

जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है
उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब

खाई है रिश्वत बे हिसाब
और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब

यही वक्त था तुम्हारे पास 
अपने किरदार को बदल देते साहब

इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे
ये मुल्क को बता देते साहब

पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा
ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब

हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा
किसी की जान की परवाह ना की किसी को जान से ही मारडाला साहब

ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब
पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब

अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है
मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब
अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है

जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब
ऐसी पुलिस पे शर्म आती है

जो संविधान की बात ना करती
जो संविधान से कामना करती

उस पुलिस पे शर्म आती है
उस पुलिस पे शर्म आती है।                

 ( खान रिज़वान )

#पुलिस से डर लगता है

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शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब अब तो पोलिस से डर लगता है अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से कोई पत्थर आ जाए पैरों में तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब खाई है रिश्वत तुमने बे हिसाब और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब यही एक वक्त था तुम्हारे पास के अपने किरदार को बदल देते साहब इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे ये मुल्क को बता देते साहब पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा हद कर दी तुमने तो देखो किसी की जान ही लडाली साहब ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब ऐसी पुलिस पे शर्म आती है जो संविधान की बात ना करती जो संविधान से कामना करती उस पुलिस पे शर्म आती है साहब उस पुलिस पे शर्म आती है साहब ( खान रिज़वान )

#शायरी #पुलिस  शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब 
अब तो पोलिस से डर लगता है

अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है
चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है

अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से
कोई पत्थर आ जाए पैरों में
तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है

जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है
उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब

खाई है रिश्वत तुमने बे हिसाब
और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब

यही एक वक्त था तुम्हारे पास के
अपने किरदार को बदल देते साहब

इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे
ये मुल्क को बता देते साहब

पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा
ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब

हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा
हद कर दी तुमने तो देखो किसी की जान ही लडाली साहब

ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब
पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब

अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है
मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब
अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है

जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब
ऐसी पुलिस पे शर्म आती है

जो संविधान की बात ना करती
जो संविधान से कामना करती

उस पुलिस पे शर्म आती है साहब
                उस पुलिस पे शर्म आती है साहब                

 ( खान रिज़वान )

#पुलिस से डर लगता है

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शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब अब तो पोलिस से डर लगता है अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से कोई पत्थर आ जाए पैरों में तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब खाई है रिश्वत बे हिसाब और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब यही वक्त था तुम्हारे पास अपने किरदार को बदल देते साहब इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे ये मुल्क को बता देते साहब पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा हद कर दी तुमने तो देखो किसी को जान से ही धोडाला साहब ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब ऐसी पुलिस पे शर्म आती है जो संविधान की बात ना करती जो संविधान से कामना करती उस पुलिस पे शर्म आती है उस पुलिस पे शर्म आती है। ( खान रिज़वान )

#पोलीस  शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब 
अब तो पोलिस से डर लगता है

अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है
चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है

अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से
कोई पत्थर आ जाए पैरों में
तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है

जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है
उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब

खाई है रिश्वत बे हिसाब
और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब

यही वक्त था तुम्हारे पास 
अपने किरदार को बदल देते साहब

इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे
ये मुल्क को बता देते साहब

पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा
ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब

हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा
हद कर दी तुमने तो देखो किसी को जान से ही धोडाला साहब

ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब
पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब

अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है
मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब
अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है

जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब
ऐसी पुलिस पे शर्म आती है

जो संविधान की बात ना करती जो संविधान से कामना करती

                  उस पुलिस पे शर्म आती है उस पुलिस पे शर्म आती है।               
 
 ( खान रिज़वान )

#पोलीस पर शर्म आती है

10 Love

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